11 लाख हड़पने को चार साल तक डाक विभाग को छकाता रहा रसूखदार

गोरखपुर    
डाककर्मियों की गलती से मिले दूसरे के नोटिस को ढाल बनाकर एक रसूखदार दूसरे के खाते का 11 लाख रुपये हड़पना चाहता था। चार साल तक वह डाक विभाग के अधिकारियों को छकाता रहा। पुलिस को धोखा देकर उसने पासबुक चोरी होने की एफआईआर भी दर्ज करा दी थी। डाक विभाग की जांच में जब असली खातेदार का नाम सामने आया तब जाकर उसने डाक विभाग का पिंड छोड़ा।

बड़हलगंज के फरसाड़ गांव की सुधा राय के नाम से डाक विभाग में दो बचत खाते थे। उनके पति सिंगापुर रहते हैं। दोनों खातों में मिलाकर 11 लाख रुपये जमा थे। वर्ष-2014 में जब बचत एजेंट शिवराज पाठक व उसके परिवार के सदस्यों ने मिलकर कई बचत खातों से करोड़ों का घोटाला कर लिया तो इसकी जांच के दौरान डाक विभाग ने सभी बड़े खाताधारकों को नोटिस भेजकर जमा धन की जानकारी दी और पासबुक के साथ डाक घर पहुंच कर खाता चेक करने के निर्देश दिए।

फरसाड़ गांव में दो सुधा राय हैं। गलती से यह नोटिस असली खाताधारक की जगह दूसरी सुधा राय के घर पहुंच गया। सुधा राय सिंगापुर रहती हैं। गांव में रहने वाले उनके भाई ने नोटिस पाने के बाद यह धन निकालने की योजना बनाई और प्रधान डाकघर पहुंच गया। पोस्टमास्टर से भुगतान का दबाव बनाने लगा। तब तक मेच्योरिटी नहीं हुई थी, लिहाजा पोस्टमास्टर ने मेच्योरिटी तक इंतजार करने को कहकर पिंड छुड़ा लिया। जबकि मेच्योरिटी की अवधि नहीं बताई गई।

एक साल बाद वह फिर सक्रिय हुआ और कुछ बड़े अधिकारियों से फोन कराकर पीएमजी के पास पहुंच गया। पीएमजी ने प्रवर अधीक्षक डाक के पास भेजा। प्रवर अधीक्षक डाक ने कुछ दिन इंतजार करने को कहकर वापस कर दिया। इस बीच उच्चाधिकारियों के फोन प्रवर अधीक्षक के पास आने लगे। आरटीआई दाखिल कर खाते का हिसाब मांगा। इसके बाद उसने पासबुक चोरी होने की ऑनलाइन एफआईआर करा दी। एक साल तक लगातार चिट्ठी भेजकर भुगतान न होने का आरोप लगाता रहा। इस बीच प्रवर अधीक्षक डाक ने खाते की डिटेल मंगाई तो पता चला कि मेच्योरिटी पूरी होने के बाद पूरी रकम का भुगतान सुधा राय को 2014 में ही कर दिया गया था।

हरकत में आए डाक विभाग ने इस मामले की फाइल बनाई और अलग से जांच कराने का निर्णय लिया गया। निकासी की स्लिप निकाली गई तो उस पर रकम निकालने की हस्ताक्षर बीके सिंह के नाम से दर्ज थी। बीते 10 जुलाई को फर्जी खाताधारक का रसूखदार भाई फिर प्रवर अधीक्षक के यहां पहुंच गया और बहन के जमा खाते की रकम मांगने लगा। इस बार प्रवर अधीक्षक ने बहन को बुलाने की बात कही तो वह लौट गया।

प्रवर अधीक्षक को पूछताछ के दौरान कुछ शक हुआ तो उन्होंने एक अधिकारी को फरसाड़ गांव पहुंच कर जांच करने को कहा। डाक विभाग के अधिकारी स्थानीय डाकिए के साथ गांव पहुंचे तो असली सुधा राय मिल गईं। उन्होंने पूरी रकम निकाले जाने की जानकारी दी। डाक विभाग ने रकम निकासी की बात उनसे लिखवा कर ले लिया। गांव का ही मामला था, लिहाजा फर्जी दावा करने वाले रसूखदार को भी इसकी जानकारी हो गई। तब जाकर उन्होंने प्रवर अधीक्षक का पिंड छोड़ा।

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