बैतूल लोकसभा चुनाव : भाजपा ने 55 वर्षीय दुर्गादास पर तो कांग्रेस ने  दाव 31 वर्षीय रामू टेकाम पर दाव 

भोपाल
बैतूल लोकसभा सीट भाजपा का मजबूत किला मानी जाती है। पिछले आठ चुनावों से यहां सिर्फ और सिर्फ भाजपा का ही कब्जा रहा है। भाजपा ने जाति प्रमाणपत्र के मामले में उलझी ज्योति धुर्वे का टिकिट काट कर यहां इस बार 55 वर्षीय गायत्री सेवक अनुभवी दुर्गादास पर दाव लगाया है तो कांग्रेस ने इस सीट को अपनी झोली में डालने के लिए इस बार यहां 31 वर्षीय युवा उम्मीदवार रामू टेकाम पर दाव लगाया है। अब यहां कांग्रेस के सामने भाजपा को लगातार नौवी जीत से रोकने की चुनौती है।

भाजपा के दिग्गज नेता विजय कुमार खंडेलवाल यहां लगातार चार बार चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके है। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र हेमंत खंडेलवाल ने चुनाव जीत कर भाजपा की इस सीट को बरकरार रखा। 2009 के परिसीमन में यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। तब से पिछले दो चुनाव यहां भाजपा की ज्योति धुर्वे जीतती आ रही है। अब यहां भाजपा ने उम्मीदवार बदला है। 

भाजपा जहां इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गायत्री भक्त दुर्गादास के संपकों के साथ इस बार फिर यह सीट अपने कब्जे में रखना चाहती है तो कांग्रेस  यहां युवा रामू टेकाम और किसान कर्जमाफी, युवाओं को रोजगार, भ्रष्टाचार की खिलाफत करते हुए चुनाव जीतने की कार्ययोजना पर काम कर रही है।

विधानसभा सीटों में कांग्रेस-भाजपा बराबरी पर- बैतूल लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें आती है। इनमें बैतूल, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, आमला, भैसदेही, हरदा,हरसूद और टिमरनी सीटें शामिल है। इनमें से चार पर कांग्रेस और चार पर भाजपा का कब्जा है।

बैतूल की आबादी24 लाख 59 हजार 626 है। इसमें से 81.68 फीसदी ग्रामीण और 18.32 फीसदी शहरी क्षेत्र से है। यहां की 40.56 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है औश्र 11.28 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां 16 लाख 7 हजार 822 मतदाता थे। इनमें से 7 लाख 70 हजार 987 महिला और 8 लाख 36 हजार 835 पुरुष मतदाता थे। वर्ष 2014 में यहां 65.16 फीसदी मतदान हुआ था।

सांसद ज्योति धुर्वे को उनके निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए 17.50 करोड़ रुपए मिले थे। ब्याज की रकम मिलाकर यह 20.64 करोड़ रुपए हो गई। इसमें से 15.96 करोड़ उन्होंने खर्च किए और 4.68 करोड़ रुपए वे खर्च ही नहीं कर पाई।

1951 में यहां पहला चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस को जीत मिली। 67 और 71 के चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस नेजीत हासिल की। 77 के चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकली और भारतीय लोकदल ने यहां पहली बार जीत हासिल की। 80 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और गुफरान आजम यहां के सांसद बने। 84 में भी कांग्रेस को जीत मिली। भाजपा ने यहां आरिफ बेग को खड़ा किया और पहली बार 89 में यहां चुनाव जीता। लेकिन इसके अगले चुनाव में 91 में असलम शेरखान ने हार का बदला ले आरिफ बेग को हराया। 96 से यह सीट लगातार भाजपा के पास है।

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