पूर्वोत्तर में बीजेपी की राह का रोड़ा बना नागरिकता बिल? कई पार्टियां छोड़ सकती हैं साथ

नई दिल्ली

आगामी लोकसभा चुनाव में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) के सहारे पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़ी बढ़त हासिल करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के प्लान को धक्का लग सकता है. राज्यसभा में लंबित नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 के खिलाफ बिहार में बीजेपी के सहयोगी दल जेडीयू समेत NEDA के सहयोगी दल मंगलवार को गुवाहाटी में बैठक करने जा रहे हैं, जिसमें ये दल बीजेपी से गठबंधन जारी रखने को लेकर बड़ा फैसला ले सकते हैं.

सीटों के लिहाज से पूर्वोत्तर के सबसे बड़े सूबे असम में बीजेपी की अहम सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) पहले  ही अपना समर्थन वापस ले चुकी है. मंगलवार को होने वाली इस बैठक की अगुवाई मेघालय के मुख्यमंत्री और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के अध्यक्ष कोनार्ड संगमा कर रहे हैं. जिसमें मिजोरम में सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF), नागालैंड की नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP), त्रिपुरा की इंडीजीनस पिपुल्स फ्रंड ऑफ त्रिपुरा (IPFT), सिक्किम की सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (SDF), के अलावा अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर से NPP के नेता शामिल होंगे.

बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में हिंदू कार्ड खेलते हुए पड़ोसी देशों से उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया था. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी इस वायदे को शामिल किया था. इसके बीजेपी बांग्लादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर बाहर निकालने की बात भी लगातार करती रही है. देश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज पूर्वोत्तर के राज्यों की 25 सीटों पर बीजेपी का खास फोकस है. मौजूदा समय में यहां की 25 सीटों में से बीजेपी के पास 8 सीट, कांग्रेस के पास भी 8 सीट और बाकी की सीटें अन्य क्षेत्रीय दलों के पास है. बता दें कि इनमें से अधिकतर क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं.

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 क्या है?

दरअसल, नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के जरिए सरकार अवैध घुसपैठियों की नई परिभाषा गढ़ना चाहती है. इसके जरिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के अवैध घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. हालांकि इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है. इसके आलावा इस विधेयक में 11 साल तक लगातार भारत में रहने की शर्त को कम करते हुए 6 साल करने का भी प्रावधान है.  

नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक वैध पासपोर्ट के बिना या फर्जी दस्तावेज के जरिए भारत में घुसने वाले लोग अवैध घुसपैठिए की श्रेणी में आते हैं.

क्यों हो रहा है विरोध?

पूर्वोत्तर के ये क्षेत्रीय दल नागरिकता विधेयक को लेकर अपना विरोध जता रहे हैं. क्योंकि इनका मानना है कि यह विधेयक उनकी सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान के साथ छेड़छाड़ है. इसके अलावा इस विधेयक को लेकर दूसरी बड़ी चिंता यह है कि इसके लागू होने से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के तहत चिंहित किए गए अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों के अपडेट को भी शून्य कर देगा. बता दें कि पिछले वर्ष असम में NRC की मसौदा सूची जारी हुई है. जिसे लेकर विवाद अभी थमा नहीं है. वहीं पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी असम की तर्ज पर NRC की मांग कर रहे हैं. तीसरा बड़ा मुद्दा यह है कि यह विधेयक धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करता है. जबकि NRC में धर्म के आधार पर अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान नहीं की गई. 

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