पुलिस छुपाती रही FIR, रमन के डॉक्टर दामाद ने कोर्ट से निकलवाई कॉपी

रायपुर
गोलबाजार थाने में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता के खिलाफ दर्ज किए गए अपराध को दो दिनों तक छिपाए रखने के बाद आखिर में पुलिस ने उसे ऑनलाइन अपलोड कर दिया है। दो दिनों बाद पुलिस ने तब यह फैसला लिया, जब आरोपी पक्षकार की तरफ से उनके वकील ने थाना पुलिस के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करते हुए कॉपी देने को कहा था।

डॉ. गुप्ता की ओर से उनके वकील हितेंद्र तिवारी की तरफ से आवेदन देकर एफआइआर की कॉपी मांगी गई थी। 16 मार्च को पहले थाने में अर्जी दी गई। इसके बाद जब जवाब नहीं मिला तो एसएसपी कार्यालय में भी एक आवेदन दिया गया। दो दिनों बाद उन्हें कोई रिस्पांस नहीं मिला, तब उन्होंने कोर्ट से एफआइआर की कॉपी निकलवाई।

वकील हितेंद्र तिवारी ने बताया कि उनके माध्यम से थाना प्रभारी के नाम पत्र लिखकर एफआइआर की कॉपी देने का आग्रह किया गया था। पुलिस से कहा गया उन्हें न्यायिक कार्य के लिए एफआइआर की कॉपी की जरूरत है।

बावजूद इसके थाना पुलिस से कोई जानकारी नहीं दी गई, जबकि नियमानुसार संबंधित पक्षकार को उनके खिलाफ दर्ज किए गए अपराधों की जानकारी देने का प्रावधान है। थाना में दिए आवेदन में वकील की तरफ से कहा गया था कि मेरे पक्षकार डॉ. पुनीत गुप्ता के विरुद्ध थाना गोल बाजार रायपुर में अपराध पंजीबद्ध किया गया है।

दैनिक समाचार पत्रों से यह ज्ञात हुआ है। उक्त पंजीबद्ध अपराध की प्रथम सूचना पत्र की प्रति की न्यायिक कार्य हेतु आवश्यकता है, लेकिन पुलिस ने कोई भी जवाब नहीं दिया।

ऑनलाइन की कार्रवाई में देरी से सवाल

डॉ. गुप्ता की तरफ से आवेदन प्रस्तुत करने वाले वकील हितेंद्र तिवारी ने कहा कि पुलिस दो दिनों तक चुप्पी साधे रही। सोमवार की देर शाम ऑनलाइन एफआइआर की कॉपी अपलोड की गई। पुलिस ने इस प्रकरण को संवेदनशील होने का दावा कर जानकारी छिपाने कोशिश की, जबकि संवेदनशील प्रकरणों में पास्को एक्ट, छेड़खानी व दहेज प्रताड़ना जैसे मामलों में एहतियात बरतने का नियम है।

व्यवस्था न बिगड़े, इसलिए ऐसा किया गया
ऑनलाइन एफआइआर की कॉपी छिपाने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। ऑनलाइन जानकारी में केवल अपराध क्रमांक लिखे थे, लेकिन बाकी जानकारियां छिपाई गई थीं। इसी को लेकर डॉ. गुप्ता के पक्ष से उनके वकील ने भी सवाल खड़े किए। इस संबंध में एसएसपी आरिफ एच. शेख ने कहा कि कानून व्यवस्था न बिगड़े, कई बार इसे ध्यान में रखकर पुलिस प्रकरणों को संवेदनशील मानकर आगे की कार्रवाई करती है। जांच के लिए दृष्टिकोण मायने रखता है।

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