विदेश मंत्री के तौर पर जयशंकर के सामने भारत-US संबंधों को पटरी लाना पहली बड़ी चुनौती

 नई दिल्ली 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी के लिए नया कैबिनेट तैयार किया है और इस बार उन्होंने विदेश मंत्रालय में बड़ा चेंज किया है। इस बार पिछली सरकार में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज को मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली और पीएम मोदी ने विदेश मंत्रालय का जिम्मा पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर को सौंपा है। एस. जयशंकर को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी दिए जाने से साफ है कि नई मोदी सरकार चाहती है विदेश स्तर पर बड़े निर्णय लेने के लिए जयशंकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।  
 
मंत्रीपद संभालते ही जयशंकर के पास पहली बड़ी चुनौती यह है कि वह भारत-अमेरिका संबंधों को एक बार फिर राह पर लाएं। मोदी ने अपनी पहली पारी के दौरान अमेरिका के साथ रिश्ते मजबूत बनाने के लिए काफी मेहनत की थी। लेकिन बीते कुछ महीनों में जब मोदी सरकार आम चुनावों में व्यस्त थी तो इन रिश्तों में कुछ दूरियां आई हैं। दोनों देशों के बीच व्यावसायिक संबंधों को लेकर खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपनी नाराजगी कई बार खुलकर जताई है। 

बीते 24 घंटों की ही बात करें, तो अमेरिका ने भारत से GSP ट्रेड (जनरलाइज सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस) को वापस ले लिया है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, वे (भारत) इस डील को पूरा करने में बाधा डाल रहे थे। अमेरिका भारत के आम चुनावों के होने का इंतजार कर रहा था और अब वे हो चुके हैं और अगले एक-दो दिन में इसकी घोषणा हो जाएगी। 

इस महीने के आखिर में जापान के ओसाका में G 20 सम्मेलन होना है। इस सम्मेलन से इतर भारत और अमेरिका के दोनों नेताओं (पीएम नरेंद्र मोदो और राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप) की मुलाकात होनी है। इस बातचीत से पहले मोदी जरूर चाहेंगे कि जिन मुद्दों को लेकर दोनों देशों के संबंधों में दूरी आ रही है, उनके हल खोज लिए जाएं। दोनों नेताओं की इस बैठक से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो 26 जून को भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से नई दिल्ली में मुलाकात करेंगे। 

पॉम्पियो जी 20 सम्मेलन में शामिल होने से पहले भारत आएंगे। दोनों देशों की कोशिश है कि वह जी20 सम्मेलन में होने वाली मुलाकात से पहले कुछ मसलों पर एक-दूसरे के विचार टटोल लें और फिर यह तय करें कि ओसाका में दोनों देशों के बीच संबंधित मुद्दों पर बात बनने लायक है या नहीं। एस. जयशंकर को यहां हरदीप पुरी का साथ मिलेगा, जिन्हें मोदी सरकार में इस बार वाणिज्य राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 

इसके बाद जयशंकर का दूसरा टास्क भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते साधने पर होगा। मोदी अपनी नई पारी के पहले विदेशी दौरे पर 8 जून को मालदीव रवाना होंगे और 9 जून को श्रीलंका। नई सरकार बनने के बाद दोनों पड़ोसी देशों की यात्रा कई मायनो में अहम है। मोदी दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं कि दोबारा सरकार में आने के बाद वह अपने करीबी पड़ोसियों और प्रशांत महासागर क्षेत्र में मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) का रुख करेंगे। यहां पाकिस्तान भी शिरकत करेगा और कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत द्वारा बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के प्रधानमंत्री इस सम्मेलन से इतर एक-दूसरे से बातचीत कर सकते हैं। भारत-पाकिस्तान मुलाकात से पहले बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि जयशंकर और अजीत डोभाल पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर क्या प्लान करते हैं। 

लेकिन इससे पहले अमेरिका के साथ बातचीत को पटरी पर दोबारा लौटाने कि लिए वह क्या करते हैं, यह सबसे खास होगा। अमेरिका के साथ शुरू हुआ हमारा व्यापार विवाद लगातार बड़ा होता जा रहा है। इस मसले पर दोनों देशों ने कई राउंड की बातचीत की है लेकिन इसके बावजूद अभी तक दोनों ही किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।

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