डेढ़ करोड़ के दवा घोटाले में तीन डॉक्टरों सहित 7 के खिलाफ आरोप तय

ग्वालियर

 वर्ष 2002 में दवाइयों खरीद में हुए करीब डेढ़ करोड़ रुपए के घोटाले में विशेष न्यायालय भ्रष्टाचार द्वारा तत्कालीन क्षेत्रीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ.अशोक विरांग, डॉ.वाचस्पति शर्मा, डॉ.ऊषा चिंचोलीकर व रमाशंकर सक्सेना के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा आरोपी अशोक गुप्ता, दिनेश अग्रवाल एवं बालकिशन गर्ग के खिलाफ धारा 120 बी के तहत पर्याप्त आधार पाते हुए आरोप तय किए गए। न्यायालय ने अशोक विरांग एवं बालकिशन गर्ग को अगली सुनवाई पर उपस्थित होने के आदेश भी दिए हैं।

क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य विभाग द्वारा जनवरी से मार्च 2002 तक एक करोड़ सैंतीस लाख बीस हजार रुपए की दवा एवं सामग्री खरीदी में भ्रष्टाचार किए जाने के आधार पर यह अभियोग प्रस्तुत किया गया है। अभियोजन में यह भी कहा गया कि क्रय समिति एक साल के बनाई गई थी, लेकिन बाद में ओवर राइटिंग कर इसका कार्यकाल दो साल कर दिया गया। क्रय की गई दवाएं भारत सरकार के उपक्रम यूपीडी पीएल में उपलब्ध थीं, लेकिन उन्हें सीधे आदेश न देते हुए जया किट उद्योग भोपाल को निर्धारित दर से अधिक दर में क्रय किया गया। दवाओं की खरीदी के लिए आठ निविदाएं ऐसी फर्मों द्वारा डाली गईं थीं जिनका न तो कोई अस्तित्व था, न ही वे दवा विक्रय के लिए पंजीकृत थीं। निविदा ऐसे अखबार में प्रकाशित कराई गईं जिसका प्रकाशन कम था। अस्तित्वविहीन फर्मों की दरों से तुलना कर क्रय आदेश जारी किए जाने की प्रक्रिया षड्यंत्र की सीमा में आती है।

जया किट उद्योग से एंटी टीबी किट्स बिना निविदा के खरीदी गईं, जिसमें शासकीय दर से अधिक राशि का भुगतान कर शासन को 18 लाख 54 हजार का नुकसान पहुंचाया गया। डॉ.वाचस्पति शर्मा ने क्रय समिति के कार्य की अवधि में ओवर राइटिंग कर अवधि बढ़ा दी थी। इस प्रकार डॉ.ऊषा चिंचोलीकर एवं डॉ.रमाशंकर सक्सेना निविदा खोलने, तुलना पत्रक व क्रय आदेश के लिए बराबर उत्तरदायी हैं। उक्त समिति में डॉ.अशोक वीरांग अध्यक्ष थे तथा शेष अभियुक्त डॉ.ऊषा चिंचोलीकर, डॉ.वाचस्पति शर्मा व डॉ.आरएस सक्सेना सदस्य बनाए गए थे। फर्जी तरीके से बढ़ाए गए कार्यकाल की भी तीनों को जानकारी थी। इस मामले में आपराधिक षड्यंत्र किया जाना दर्शित होता है। इस प्रकार उनके द्वारा दवाएं महंगी खरीदी जाना स्पष्ट होता है। उन्होंने जया किट व गोवर्धन ट्रेडिंग के संचालक अशोक गुप्ता, दिनेश अग्रवाल व बालकिशन गर्ग को लाभ पहुंचाया।

डॉ.वाचस्पति शर्मा की ओर से उनके एडवोकेट संजय शर्मा का न्यायालय में कहना था कि एक करोड़ पचास लाख रुपए की दवाएं व शल्य उपकरण की खरीदी के कोई प्रमाण नहीं हैं। डॉ.ऊषा चिंचोलीकर एवं डॉ.आरएस सक्सेना की ओर से एडवोकेट पीयूष गुप्ता ने कहा कि दोनों के खिलाफ कोई दस्तावेज पेश नहीं किए गए हैं।

शासन को आर्थिक क्षति हुई
विशेष लोक अभियोजक एके श्रीवास्तव का कहना था कि आरोपीगण ने आपराधिक षड्यंत्र करते हुए शासन को क्षति पहुंचाई है, इसके तथ्य उपलब्ध हैं। अभियोजन के अनुसार जनवरी 2000 से मार्च 2002 के मध्य संभागीय स्तर पर दवाइयों की खरीदी के लिए एक क्रय समिति का गठन किया गया था, जिसमें डॉ.वाचस्पति शर्मा सदस्य थे तथा उन पर यह आरोप लगाया गया कि क्रय समिति के सदस्य की हैसियत से तत्समय क्रय की गई दवाइयों की कीमत क्वालिटी, मांग, पूर्ति का उत्तरदायित्व था, जिसका पालन न करते हुए उन्होंने पद का दुरुपयोग करते हुए शासन की खरीद की प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया, इससे शासन को आर्थिक हानि हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *