5 दांव से मुमकिन हुआ, एक बार फिर मोदी सरकार…

 
नई दिल्ली 

मोदी सरकार की सफलता को एक बार फिर दोहराने के लिए नरेंद्र मोदी ने पांच बड़े दांव खेले। लगातार दो बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाकर इतिहास रचने वाले मोदी ने इस नामुमकिन से दिखने वाले लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ ऐसे दांव फेंके जिससे यह मुमकिन हो सका। पूरे चुनाव के दौरान उसका बखूबी से इस्तेमाल भी किया। जानते हैं ये 5 दांव और उसका क्या पड़ा असर- 
 
1. मैं ही उम्मीदवार-
जब चुनाव की शुरुआत हुई तो बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात लोकल एमपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी। खुद पार्टी की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक लोकल सरकार या सांसदों की एंटी इनकंबेंसी से निबटना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसकी काट के लिए हर सीट पर पीएम मोदी ने खुद को ही उम्मीदवार के रूप में पेश किया। हर वोट मोदी को… इस नाम से कैंपेन चलाया गया। यह क्लिक भी किया। कई सीटों पर लोकल उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी नजरअंदाज हुई। इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने शुरू में तीस फीसदी से अधिक मौजूदा सांसदों के टिकट भी काटे थे। 

2. आएगा तो मोदी ही-
वोटरों के बीच विश्वास दिलाया कि इस बार भी नरेंद्र मोदी की सरकार दोबारा चुनी जा रही है। जिस विश्वास के साथ पूरा कैंपेन रचा गया, बीच में सरकार के दूसरे टर्म के कामकाज के लक्ष्य की बात की गई। इससे मोदी उलझन में रहे वोटरों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि वह जीतते हुए गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। दरअसल, चुनाव में परिणाम को तय करने की दिशा में सबसे अहम भूमिका अंतिम समय में वोटिंग पसंद तय करने वालों की होती है। आंकड़ों के अनुसार 20 फीसदी से अधिक वोटर इस कैटिगरी में होते हैं। इनके बीच आएगा तो मोदी ही… बड़ा फैक्टर रहा। 

3. मोदी नहीं तो कौन- 
नरेंद्र मोदी ने विपक्षी गठबंधन को महामिलावट की संज्ञा दी। यह शब्द पूरे चुनाव में मजबूती से उछाला गया। मजबूत सरकार बनाम मजबूर सरकार, पूरे कैंपेन का मजबूत हथियार बना। उसपर विपक्षी दलों की उठापटक ने मोदी की बात को कहीं न कहीं कनेक्ट भी किया। साथ ही मोदी नहीं तो कौन, यह सवाल भी बीजेपी ने पूरे कैंपेन में खूब उछाला। बीजेपी ने मोदी के सामने विपक्ष के पीएम उम्मीदवार को सामने लाने की चुनौती दी। बहस इस इर्द-गिर्द घूमी। मोदी नहीं तो कौन, यह बात वोटर के बीच अच्छे से कनेक्ट हुई। विकल्पहीनता की बात भी मोदी के पक्ष में गई। जो मोदी के सामने विकल्प की तलाश कर रहे थे उस नैरेटिव को मोदी ने अपने ही दांव से परास्त कर दिया। 

4. मोदी है तो मुमकिन है-
पूरे कैंपेन के दौरान मोदी ने मजबूत और निर्भीक फैसले लेने वाले नेता के रूप में खुद को पेश किया। कैंपेन का नाम भी दिया- मोदी है तो मुमकिन है। आतंकवाद से लेकर महंगाई तक ऐसे-ऐसे मुद्दों को सामने लाया गया जो अब तक नहीं आए थे। चुनाव के बीच में एंटी मिसाइल सेटेलाइट टेस्ट करने की घटना को भी जनता के बीच उसी तरह पेश किया गया। सीधा और प्रभावी संदेश भी जनता तक पहुंचाने में सफल रहे कि मोदी ही ऐसा कर सकते हैं और वह मजबूरी नहीं बल्कि जरूरी हैं। वह वोटरों के बीच अपने मजबूत फैसलों का हवाला देकर यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि मजबूत नेतृत्व के कारण ही बहुत कुछ हुआ। 

5. टारगेट पर निशाना- 
बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले 120 ऐसी सीटें चुन ली थीं, जो बीजेपी के लिए 50-50 चांस वाली मानी गईं। इसके बाद पीएम मोदी के नेतृत्व में पूरा फोकस उनपर रखा गया। प्रधानमंत्री मोदी ने न सिर्फ इन सभी 120 सीटों पर रैलियां कीं, बल्कि उसके आसपास भी पूरा फोकस किया। खासकर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 50 से अधिक सीटों पर पीएम मोदी की रैली रखी गई। नतीजों में इसका असर साफ दिखा जब बीजेपी इन 120 में 100 से अधिक सीटें जीतने में सफल रही। मोदी को कहां-कहां और कब उतारना है, यह दांव बिल्कुल सटीक लगा और कई कमजोर लग रही सीट को मोदी मैजिक ने बीजेपी के पक्ष में कर दिया। 
 

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