साढ़े तीन लाख वनवासियों को बेघर नहीं करेगी कमलनाथ सरकार

भोपाल 
मध्य प्रदेश में वनवासियों को जंगल की भूमि से कमलनाथ सरकार बेदखल नहीं करेगी. सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश पर राज्य सरकार को स्टे मिल गया है.  सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को आदेश दिया था कि जिन लोगों का वनाधिकार पट्टा निरस्त हो गया है, उन्हें जंगल से बेदखल कर दिया जाए. लोकसभा चुनाव के ठीक पहले आए इस आदेश से हड़कंप मच गया था. जिसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई. कोर्ट ने सरकार की दलीलें सुनते हुए पुराने फैसले पर स्टे दे दिया है.

कमलनाथ सरकार पिछली सरकार द्वारा अपात्र मानकर खारिज किए गए आवेदनों की फिर से जांच कराएगी और पात्र वनवासियों को पट्टे देगी. जनजातीय कार्य विभाग ने पट्टे बांटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अब प्रदेश के साढ़े तीन लाख से ज्यादा वनवासी वनभूमि से बेदखल नहीं किए जाएंगे. आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि बीजेपी सरकार ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया था. इस कारण साढ़े तीन लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनके घर से बेदखल करने की नौबत आ गई थी.

मंत्री ने कहा कि पिछली सरकार ने जिन्हें अपात्र घोषित किया है, उनमें पात्र भी हैं, जिन्हें अब परीक्षण कर पट्टे दिए जाएंगे. मंत्री मरकाम ने बताया कि पिछली सरकार के समय जिन अफसरों ने आवेदनों का परीक्षण किया गया और उन्हें अपात्र घोषित किया है, यदि वे अब पात्र पाए जाते हैं तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.

मालूम, हो कि सुप्रीम कोर्ट ने देश के करीब 16 राज्यों के 11.8 लाख से अधिक आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया था. आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने एक कानून का केंद्र सरकार बचाव नहीं कर सकी, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया.  कोर्ट ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया था कि वे 24 जुलाई से पहले हलफनामा दायर कर बताएं कि उन्होंने तय समय में जमीनें खाली क्यों नहीं कराईं.

अब जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे वन अधिकार अधिनियम के तहत खारिज किए गए दावों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और आदेशों को पास करने वाले अधिकारियों की जानकारी दें. इसके साथ ही पीठ ने यह जानकारी भी मांगी कि क्या अधिनियम के तहत राज्य स्तरीय निगरानी समिति ने प्रक्रिया की निगरानी की. पीठ ने राज्यों को ये जानकारियों जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया है. इसके साथ तब तक के लिए 13 फरवरी के अपने आदेश पर रोक लगा दी है. पीठ इस मामले में अब 30 जुलाई को आगे विचार करेगी.

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