सरकार की चूक का नतीजा, फिर बढ़ेगी निजी स्कूलों की फीस

रायपुर
छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों की फीस पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। नतीजा यह हो रहा है कि हर साल निजी स्कूलों में 15 से 20 फीसद तक फीस बढ़ रही है। साल 2019-20 में एक बार फिर निजी स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए मोटी फीस भी लगभग तय हो चुकी है।

राज्य में इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा के लिए फीस तय करने के लिए फीस विनियामक समिति है, लेकिन निजी स्कूलों में इंजीनियरिंग से अधिक फीस पालकों से ऐंठी जा रही है। पिछले सालों में सरकारों ने स्कूली फीस को नियंत्रित करने के लिए कमेटी बनाने का सिर्फ दावा किया, हकीकत में कोई मापदंड ही नहीं है।

यह स्थिति तब है जब प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में स्कूलों की फीस तय करने के लिए बाकायदा नियम और कानून बना लिए गए हैं। हालांकि प्रदेश में फीस के लिए पालक कमेटी बनी है, लेकिन इसमें चंद पालकों को राहत देकर निजी स्कूल मिलीभगत करके फीस तय कर लेते हैं।

पालकों का कहना है कि निजी स्कूलों में फीस के नियंत्रण के लिए दूसरे राज्यों में कानून हैं पर प्रदेश में इस पर छूट दे दी गई है। कानून के तहत निजी विद्यालयों की फीस में 11 प्रकार के शुल्क शामिल किए गए हैं।

इसमें शिक्षण शुल्क, पुस्तकालय फीस, खेल फीस, लैब फीस, कम्प्यूटर फीस, काशन मनी, परीक्षा फीस, विभिन्न् अवसरों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की फीस, प्रवेश फीस, पंजीकरण-विवरण पत्रिका-प्रवेश आवेदन प्रारूप फीस तथा कोई अन्य फीस विद्यार्थियों से वसूल की जाती है। लेकिन यह फीस कितनी होगी, यह तय नहीं है।

राजधानी में ही कई निजी स्कूल ऐसे हैं जहां विवरण पत्रिका ही 500 से 1000 रुपए तक में बिक रही है। इस पर निगरानी के लिए कोई सिस्टम नहीं बन पाया है। प्रदेश में तीन तरह के निजी स्कूल संचालित हैं।

इनमें एक रसूखदारों का स्कूल है, जहां पर न्यूनतम फीस 50 हजार रुपए से शुरू होकर सवा लाख रुपए तक है। दूसरे मध्यम स्कूल हैं जहां फीस 30 से 70 हजार रुपये तक है और सबसे निचले स्तर पर निजी स्कूलों में फीस न्यूनतम 10 हजार रुपए वार्षिक से लेकर 35 हजार रुपए तक है। सबसे अधिक संख्या निचले स्तर के स्कूलों की है, जहां सबसे अधिक पालक फीस दे रहे हैं।

जन राज्यों में स्कूलों की फीस पर नियंत्रण के लिए कानून बनाए गए हैं, वहां फीस ज्यादा बढ़ाने पर कार्रवाई का प्रावधान है। कई राज्यों में कानून अभी पाइप लाइन पर है। छत्तीसगढ़ में सालों से यह प्रस्ताव लंबित है। पिछली सरकार की कैबिनेट तक यह प्रस्ताव जाने के बाद इसे ठुकरा दिया गया था।

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