सरकारी कर्मचारी अब अपनी मर्जी के निजी अस्पतालों में नहीं करा सकेंगे इलाज

भोपाल
सरकारी कर्मचारियों द्वारा इलाज के लिए मनमाने ढंग से निजी अस्पतालों में कराया जाता है जिससे सरकारी खजाने पर बोझ पड रहा था,  सरकारी कर्मचारियों द्वारा स्वयं व परिजनों का इलाज मनमाने निजी अस्पतालों में कराना और शासन से इलाज का भारी पैकेज लेना आम हो गया है। इसमें कहीं न कहीं सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों व निजी अस्पतालों के बीच गठजोड़ नजर आता है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कर्मचरियों द्वारा मनमर्जी सेनिजी अस्पतालों में इलाज कराने पर रोक लगाने की तैयारी की है, अब कर्मचारियों को उनके हेडक्वार्टर के नजदीक के मेडीकल कॉलेज के अधिष्ठाता से परीक्षण कराना होगा। मेडीकल कॉलेज में परीक्षण के बाद रिफर की अनुमति दी जायेगी, लेकिन अस्पताल विशेष को रिफर नहीं किया जायेगा।

रेफर करेंगे लेकिन अस्पताल का नाम नहीं लिखेंगे डीन, सिर्फ इलाज की देंगे सलाह सरकारी कर्मियों और उनके आश्रितों के उपचार का मामला
चिकित्सा शिक्षा विभाग की अवर सचिव शर्मिला ठाकुर ने प्रदेश के सभी विभागों को पत्र भेजकर इलाज की गाईडलाईन भेजी है। सरकारी कर्मचारियों और उनके आश्रितों के उपचार की चिकित्सा शिक्षा विभाग के निर्धारित पैकेज के तहत अनुमति अब कर्मी के पदस्थापना के नजदीकी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के डीन कार्यालय से मिलेगी। 

डीन केवल बीमारी का परीक्षण कर उपचार की सलाह दे सकेंगे। मरीजों को अस्पताल विशेष को रेफर नहीं कर सकेंगे। कर्मी अपना और आश्रित का चिकित्सा शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त किसी भी अस्पताल में उपचार करा सकेंगे। इस संबंध में जारी नई गाइडलाइन में उपचार के लिए अग्रिम स्वीकृति में बीमारी के उपचार की अनुमानित राशि का 80 प्रतिशत तक स्वीकृत करने का अधिकार होगा। चिकित्सा शिक्षा विभाग में अवर सचिव शर्मिला ठाकुर के अनुसार नजदीकी चिकित्सालय में संबंधित बीमारी के उपचार की सुविधा नहीं होने की स्थिति में ही मरीज को राज्य के बाहर उपचार के लिए निर्धारित पैकेज से अधिक खर्च की स्वीकृति प्रदान की जा सकेगी। इसमें 25 प्रतिशत तक अधिक राशि की स्वीकृति के लिए संभागायुक्त की अध्यक्षता में गठित छह सदस्यीय समिति अनुमोदन प्रदान करेगी।

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