सप्ताह के सभी 5 कार्यदिवसों पर होगी सुनवाई, जानिए तीसरे दिन सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ

 
नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की शुक्रवार को भी सुनवाई होगी। इस तरह इस मामले की सप्ताह के सभी पांचों कार्यदिवसों पर सुनवाई होगी। आम तौर पर संवैधानिक पीठ मंगल, बुध और गुरुवार को ही बैठती है। इससे पहले, सीजेआई की अगुआई वाली संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को मामले की लगातार तीसरे दिन सुनवाई की। इस दौरान हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें रखी। 
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अयोध्या विवाद के एक पक्षकार 'राम लला विराजमान' के वकील के. परासरन से पूछा कि किसी देवता के जन्म स्थान को कानून की दृष्टि से कैसे 'व्यक्ति' माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जहां तक हिंदू देवताओं की बात है तो उन्हें कानून की दृष्टि से व्यक्ति माना गया है, जो संपत्ति और संस्थाओं के मालिक हो सकते हैं और मुकदमा भी कर सकते हैं। लेकिन क्या उनके जन्म स्थान को भी कानूनी तौर पर व्यक्ति माना जा सकता है और इस मामले में एक पक्षकार के रूप में क्या 'राम जन्मस्थान' कोई वाद दायर कर सकते हैं। 

बेंच ने परासरन से जानना चाहा, 'क्या जन्म स्थान को कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है। जहां तक देवताओं का संबंध है तो उन्हें कानूनी व्यक्ति माना गया था।' संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई. चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं। 

पीठ के इस सवाल के जवाब में परासरन ने कहा, 'हिन्दू धर्म में किसी स्थान को उपासना के लिए पवित्र स्थल मानने के लिए वहां मूर्तियों का होना जरूरी नहीं है। हिन्दूवाद में तो नदी और सूर्य की भी पूजा होती है और जन्म स्थान को भी कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है।' अयोध्या मामले में देवता की ओर से दायर वाद में भगवान राम के जन्म स्थान को भी एक पक्षकार बनाया गया है। इस पर पीठ ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया जिसमे पवित्र गंगा नदी को एक कानूनी व्यक्ति माना गया है जो मुकदमे को आगे बढ़ाने की हकदार हैं। इसके बाद पीठ ने परासरन से कहा कि दूसरे बिन्दुओं पर अपनी बहस आगे बढ़ाएं। 

परासरन ने आरोप लगाया कि 'राम लला विराजमान' की मूर्ति को उस समय पक्षकार नहीं बनाया गया जब मैजिस्ट्रेट ने विवादित स्थल को कुर्क किया और जब दीवानी अदालत ने इस मामले में रिसीवर नियुक्त करके निषेधात्मक आदेश दिया था। जन्म स्थान के महत्व का जिक्र करते हुए परासरन ने संस्कृत के श्लोक 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी' को पढ़ा और कहा कि जन्म स्थान स्वर्ग से भी महान है। 

इससे पहले, एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि 'राम लला विराजमान' और 'निर्मोही अखाड़ा' द्वारा दायर दो अलग-अलग वाद एक दूसरे के खिलाफ हैं और यदि एक जीतता है तो दूसरा स्वत: ही खत्म हो जाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि मुस्लिम पक्ष को किसी भी एक वाद में बहस शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है क्योंकि कानूनी रूप से सिर्फ इसकी ही अनुमति दी जा सकती है। संविधान पीठ अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 6 अगस्त से नियमित सुनवाई कर रही है। 
(पीटीआई से भी इनपुट के साथ) 
 

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