ऐसे फंसेगा पाकिस्तान, आर्टिकल 370 पर UN जाने की धमकी

नई दिल्ली 
कश्मीर मुद्दे पर 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से जो कदम उठाने को कहा था, उसे इस्लामाबाद ने आजतक नहीं किया। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के भारत के फैसले से बौखलाए पाकिस्तानी पीएम इमरान खान संयुक्त राष्ट्र में जाने की धमकी दे रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि खुद इस्लामाबाद ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से जुड़ी अपनी प्रतिबद्धताओं को कभी पूरा नहीं किया। 
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 47 में कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए साफ तौर पर चरणबद्ध कदमों के बारे में बताया गया है। इन सारे कदमों को यूएन कमिशन फॉर इंडिया ऐंड पाकिस्तान (UNCIP) के 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव में भी रखा गया है। बता दें कि 20 जनवरी 1948 को UNSC के प्रस्ताव संख्या 39 के तहत ही UNCIP का गठन हुआ था। 

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र ने जिन कदमों के बारे में बताया था, उसके मुताबिक पाकिस्तान को कश्मीर से अपने सैनिकों को पूरी तरह से हटाना होगा। इसके अलावा पाकिस्तान को 'कबीलाइयों' और आम तौर पर उस इलाके से बाहर रहने वाले ऐसे पाकिस्तानी नागरिक जो युद्ध के मकसद से वहां मौजूद हैं, को भी वापस बुलाने की हर मुमकिन कोशिश करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, एक बार जब पाकिस्तान इन कदमों को पूरी तरह उठा लेगा तो उसके बाद भारत भी कश्मीर से अपनी सेना को चरणबद्ध तरीके से बुलाएगा। 

हकीकत यह है कि पाकिस्तान ने कभी भी संयुक्त राष्ट्र के शर्तों को पूरा नहीं किया। कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से वाकिफ एक विशेषज्ञ ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया, 'पाकिस्तान न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से पर अवैध कब्जा बनाए हुए हैं बल्कि नाटकीय ढंग से सैन्य तैनाती को काफी बढ़ाया है। इस तरह वह UNSC के प्रस्ताव संख्या 47 और UNCIP के 13 अगस्त 1948 व 5 जनवरी 1949 के प्रस्तावों का पालन नहीं किया है।' उन्होंने बताया कि ऐसा करने से पाकिस्तान ने जनमतसंग्रह की मांग का अधिकार खो दिया। 

29 मार्च 1956 को लोकसभा में अपने एक भाषण में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि UNCIP को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले कश्मीर से अपनी सेना हटाए और वह होने के बाद उसे भारत को भी अपने सेना हटाने के लिए कहना चाहिए था। नेहरू ने संसद में अपने भाषण में तब कहा था, 'आज साढ़े 8 साल बीत गए लेकिन पाकिस्तानी सेना अब भी वहां (POK) में मौजूद है। इसलिए, जनमतसंग्रह की बातों का आधार अपने आप ही पूरी तरह खत्म हो चुका है।' 

29 मार्च 1956 को ही भारत ने कश्मीर में जनमतसंग्रह की अपनी पेशकश को 3 आधार पर वापस ले लिया। पहला आधार यह था कि संयुक्त राष्ट्र की शर्तों के मुताबिक पहले पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी सेना हटानी थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दूसरा आधार यह कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने भारत के साथ विलय को मंजूरी दे दी है और भारतीय संविधान को स्वीकर कर लिया है। भारत ने तीसरा आधार यह बताया था कि पाकिस्तान की इच्छा इस विवाद को सैन्य तरीके से हल करने की है जिससे स्थितियां बदल चुकी हैं। 

पाकिस्तान ने न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र की शर्तों को पूरा नहीं किया बल्कि उसके उलट कई ऐसे कदम उठाए जिससे यथास्थिति बदल गई। उसने अपने अवैध कब्जे वाले कश्मीर में कई बदलाव किए और बंटवारा करते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान को उससे अलग कर दिया। उसने POK में पश्तुनों और गिलगित-बाल्टिस्तान में पंजाबी आबादी को बसाकर यथास्थिति से छेड़छाड़ की। इसके अलावा, पाकिस्तान ने 1963 में चीन के साथ सीमा समझौते के तहत कश्मीर का 5,180 वर्ग किलोमीटर इलाका पेइचिंग को दिया। 

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