लोकसभा चुनाव 2019: राजनीति में छाए हैं रजवाड़े, कई प्रदेशों में चल रहा लोकतंत्र में राजाओं का सिक्का

 
नई दिल्ली 

लोकतंत्र के साथ राजतंत्र की विदाई हुई तो राजाओं ने रहनुमाई का नया रास्ता पकड़ लिया। देश और प्रदेश की सियासत में कई रियासतें न केवल सक्रिय हैं, बल्कि कुछ प्रदेशों में आज भी उनका सिक्का चलता है। यूपी के मांडा के राजपरिवार से निकले विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के पीएम बने तक थे और मंडल कमीशन लागू करके सियासत और 'समाजशास्त्र' में भी बड़े बदलाव की जमीन तैयार की थी। अलग-अलग हिस्सों में छोटे बड़े सौ से अधिक राजघराने राजनीति के जरिए माननीय बनने की जुगत में लगे हैं। सियासत में 'राज' कर रहे है ऐसे कुछ प्रमुख राजघरानों के बारे में बता रहे हैं प्रेमशंकर मिश्र: 
 

बुशहर रियासत (हिमाचल प्रदेश) 
इस राजघराने के वीरभद्र सिंह का सिक्का यहां की सियासत में खूब चला है। 1962 में कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में जीत के साथ सियासी पारी शुरू करने वाले वीरभद्र पांच बाद सांसद रहे। केंद्र में इस्पात मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। हिमाचल प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस दौरान उनकी 2004 में उनकी पत्नी भी सांसद रहीं। इस समय वीरभद्र सिंह हिमाचल की अर्की सीट से विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण की सीट से विधायक बना सियासी उत्तराधिकार सौंपने की जमीन तैयार कर दी है। 

सरगुजा रियासत (छत्तीसगढ़) 
छत्तीसगढ़ की सियासत में यह सबसे सक्रिय राजघराना है। इस घराने के चंडीकेश्वर सिंह देव 1952 में विधायक बने थे। उनकी पत्नी महारानी देवेंद्र कुमारी भी कांग्रेस से विधायक और मंत्री रहीं। फिलहाल यहां के टीएस सिंह देव प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में है। रमन सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने वाले टीएस देव इस समय प्रदेश की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। 

जशपुर राजघराना (छत्तीसगढ़) 
यहां के राजा विजय भूषण सिंह देव 1952 और 1957 में विधायक रहे और 1962 में रायगढ़ से सांसद बने। राजघराना सर्वाधिक चर्चा में रहा धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाने वाले दिलीप सिंह जूदेव के चलते। दो बार लोकसभा व एक बार राज्यसभा पहुंचे दिलीप अटल सरकार में मंत्री भी बने लेकिन रिश्वत कांड में नाम आने के चलते इस्तीफा देना पड़ा। इनके बेटे रणविजय सिंह जूदेव बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं। भतीजे युद्धवीर सिंह जूदेव दो बार विधायक रहे और 2018 के विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी संयोगिता सिंह को चंद्रपुर सीट से बीजेपी ने उतारा लेकिन वे हार गईं। 

ग्वालियर रियासत (मध्य प्रदेश) 
सिंधिया राजघराने की राजनीतिक एंट्री हुई 1957 में महारानी विजय राजे सिंधिया के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने से। बाद में वे जनसंघ और बीजेपी का हिस्सा बनीं व रामजन्म भूमि आंदोलन की रूपरेखा में अहम भूमिका निभाई। उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस संग सियासत में रहे और 9 बार सांसद बने और केंद्र में मंत्री रहे। उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के वेस्ट यूपी के प्रभारी और एमपी में गुना से सांसद हैं। 
 

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