लॉकडाउन ने भारत में कोरोना फैलाव की तेजी को 60% से ज्यादा घटाया : अमेरिकी स्टडी

 
नई दिल्ली 

भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते केसों के बावजूद, लॉकडाउन फैलाव की तीव्रता को रोकने में काफी हद तक सफल रहा है. ये निष्कर्ष अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की एक स्टडी का है. असल में, लॉकडाउन से पहले फैलाव की जो तीव्रता थी वो लॉकडाउन अवधि में घटकर एक तिहाई रह गई.

भारत में लॉकडाउन का 54 दिन तक कड़ाई से पालन के बाद लॉकडाउन 4.0 में बंदिशों में काफी छूट दी गई. ये छूट किस स्तर की हों, ये फैसला लेना राज्यों पर ही छोड़ा गया है. कई राज्य धीरे-धीरे गैर-आवश्यक सेवाओं को फिर धीरे-धीरे शुरू कर रहे हैं. भारत 25 मार्च को जब लॉकडाउन में गया तब देश में 500 केस थे. 18 मई से बंदिशों में ढील देनी शुरू की गई तो देश में Covid-19 केस का आंकड़ा 100,000 को पार कर गया.
 
22 मई को सबसे अधिक कोरोना के नए केस
भारत ने 22 मई को एक दिन में सबसे अधिक नए केस रिकॉर्ड किए. इस एक दिन में ही 6,000 से अधिक नए केस सामने आए. देश में कुल केस की संख्या 1.18 लाख से अधिक हो गई है. अभी तक 3,600 मौतें और 49,000 रिकवरी रिपोर्ट हुई हैं. 7 मई से, भारत हर दिन 3,000 से अधिक नए केस दर्ज कर रहा है. ऐसे हालात में प्रतिबंधों में ढील दिए जाने को लेकर आलोचना हो रही है.

हालांकि, वायरस का रिप्रोडक्शन रेट (R0) का विश्लेषण अलग ही कुछ कहता है. R0 हमें बताता है कि एक वाहक की ओर से कितने व्यक्तियों को संक्रमित किया जा सकता है. मिसाल के लिए, R0 का मूल्य 2 है तो इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति औसतन दो लोगों को संक्रमित कर सकता है. 1 से नीचे के R0 का मतलब होगा कि हर नया संक्रमण एक और व्यक्ति को भी संक्रमित नहीं कर सकता है और बीमारी का असर धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा. R0 का यह वांछनीय मूल्य है.

स्टडी में पाया गया कि 24 मार्च को भारत बंद होने से एक दिन पहले R0 3.36 था, यानि एक संक्रमित व्यक्ति तीन से अधिक सामान्य व्यक्तियों को संक्रमित कर रहा था. लॉकडाउन 1.0 के अंत तक 14 अप्रैल को R0 1.71 पर आ गया. 3 मई को, जब लॉकडाउन 2.0 खत्म हुआ तो यह घटकर 1.46 हो गया. और 16 मई को, यह और घटकर 1.27 पर आ गया. इसके मायने हैं कि लॉकडाउन ने वायरस के रिप्रोडक्शन रेट को लगभग एक तिहाई कर दिया.

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और भारतीय सांख्यिकी संस्थान की एक और स्टडी में पाया गया कि लॉकडाउन की वजह से 20 लाख केस और 54,000 मौतों को रोका जा सका. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर लॉकडाउन से पहले वाला R0 ही बना रहता तो भारत में कुल केसों और मौतों के आंकड़े कहीं ज्यादा ऊंचे होते.

लेकिन R0 अब भी 1 से ऊपर है, जिसका अर्थ है कि वायरस अभी भी संक्रामक है. तो भारत का अगला कदम क्या होना चाहिए? यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का मानना ​​है कि भारत को ’ट्रिपल-T’ नजरिए को आगे बढ़ाना चाहिए.

प्रो मुखर्जी ने कहा, “लक्ष्य R0 को यूनिटी (1 मूल्य) तक लाना चाहिए. ‘ट्रिपल-T’ सिद्धांत यानि ‘टेस्ट, ट्रेस एंड ट्रीट’ को लक्षणों की ट्रैकिंग की इंटेलिजेंट रणनीति, रैंडम टेस्टिंग और टारगेटेड टेस्टिंग के साथ बढ़ाना होगा. हम अगले दो हफ्तों में 4 करोड़ टेस्ट करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, लेकिन हम लक्षणों की आसान रिकॉर्ड-कीपिंग और कॉन्टेक्ट डायरिया बना सकते हैं. कम्युनिटी को जोड़ने के साथ ही आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिए से सबसे कमजोर को बचाना सबसे अहम पहलू होगा.”

राज्यों का प्रदर्शन कैसा?
राज्य-वार आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकतर भारतीय राज्यों में 1 से ऊपर R0 है. डेटा को चार भागों में अलग किया गया है- रेड राज्य, जहां R0 2 से ऊपर है. ग्रीन राज्य, जहां R0 1 से नीचे है; 1.27 के राष्ट्रीय औसत से ऊपर R0 वाले राज्य; और राष्ट्रीय औसत R0 से नीचे वाले राज्य.

रेड राज्यों में, ओडिशा में सबसे अधिक 3 का R0 था. इसके बाद त्रिपुरा (2.4), तेलंगाना (2.34) और बिहार (2.24) का नंबर रहा. पंजाब में सबसे कम 0.5 का R0 था. कम R0 वाले राज्यों में पंजाब के बाद आंध्र प्रदेश (0.91) और हरियाणा (0.94) का प्रदर्शन था. Covid-19 फैलाव की विभिन्न रेंज के लिए इस तथ्य को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि वायरस ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग राज्यों में प्रवेश किया. 

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