लखनऊ: राजनाथ को रोक पाएंगी पूनम सिन्हा?

लखनऊ
विपक्ष ने अंतत: लखनऊ के लिए उम्मीदवार तय कर लिया है। 1991 से ही विपक्ष के लिए यह सीट अबूझ पहेली रही है। इस बार भी आखिरी समय तक मंथन के बाद विपक्ष ने जिस तरह से चेहरे तय किए हैं, उससे लखनऊ को लेकर उनका 'संशय' साफ दिख रहा है। राज को फिर लखनऊ का 'नाथ' बनने से पूनम सिन्हा एवं प्रमोद कृष्णन रोक पाएंगे इसको लेकर विपक्ष के रणनीतिकार ही आश्वस्त नहीं है।

विपक्ष ने ज्यादातर मौकों पर 'सितारों' पर लगाया है दांव
कुछ एक मौके को छोड़ दिया जाए तो विपक्ष ने यहां से बीजेपी को चुनौती देने के लिए बाहरी या 'सितारे' ही चुने हैं। हालांकि, यह सितारे विपक्ष के 'सितारे' नहीं बदल पाए। एसपी ने 1996 में लखनऊ में पहला चुनाव लड़ा तो राजबब्बर पर भरोसा किया। 1998 में मुजफ्फर अली ने चुनौती दी लेकिन वह राजबब्बर से भी कमजोर साबित हुए। 1999 में कांग्रेस अटल बिहारी वाजपेयी को चुनौती देने कर्ण सिंह को लेकर आई लेकिन परिणाम अपरिवर्तित रहा। 2004 में निर्दलीय लड़ने आए राम जेठमलानी के कंधे पर कांग्रेस ने अपनी भी उम्मीद रख दी लेकिन जनता ने बुरी तरह से झटक दिया। 2009 इकलौता चुनाव था जब बीजेपी को पसीने छूटे थे। कांग्रेस से अपेक्षाकृत स्थानीय रीता बहुगुणा जोशी से महज 41 हजार वोट से लाल जी टंडन जीत पाए थे। एसपी तब भी स्टार नफीसा अली को लेकर आई थी और उनकी जमानत नहीं बची थी। 2014 में कांग्रेस से रीता ही सम्मानजनक वोट पाने में सफल रहीं, एसपी-बीएसपी नाम भर के रहे। आप फिल्म स्टॉर जावेद जाफरी को लेकर आई लेकिन वह जमानत नहीं बचा पाए।

जमीन पर नहीं उतरती जातीय अंकगणित!
कोर वोटरों की जातीय गणित पर बात करें तो विपक्ष के लिए लखनऊ 'अभेद्द' नहीं दिखता। लेकिन, जातीय अंकगणित अक्सर यहां कभी हल नहीं हो पाती। जानकारों की मानें तो यहां करीब पौने पांच लाख मुस्लिम और तीन लाख कायस्थ हैं। दो लाख से अधिक दलित हैं। एसपी-बीएसपी इस बार एक साथ है और उनका संभावित प्रत्याशी कायस्थ। ये गठबंधन के लिए वोट में बदलें तो नतीजे अप्रत्याशित हो सकते हैं। लेकिन, कायस्थ आम तौर पर बीजेपी का कोर वोटर है और शिया मुस्लिमों में बीजेपी व खासकर राजनाथ सिंह की अच्छी पैठ उन्हें विपक्ष से दूर करती है। करीब साढ़े चार लाख ब्राह्मण, एक लाख ठाकुर व तीन लाख से अधिक व्यापारी, सिंधी व पंजाबी भी बड़े पैमाने पर बीजेपी के साथ ही जुड़ते हैं। ऐसे में विपक्ष के लिए राह मुश्किल हो जाती है। मसलन मुस्लिम एसपी का कोर वोटर माना जाता है और पिछली बार अभिषेक मिश्र के तौर पर ब्राह्मण प्रत्याशी भी था उसके बाद भी एसपी को महज 56 हजार वोट मिले थे। इन समीकरणों के हल न होने के चलते अक्सर विपक्ष पर राजनाथ के लिए 'फ्रेंडली' फाइट के भी आरोप लगते हैं।

लड़ाने वालों से जान-पहचान में जुटीं पूनम
सियासत की उलटबांसी का यह दिलचस्प नमूना है। गुरुवार को जिस पार्टी के टिकट पर पूनम सिन्हा पर्चा भरेंगी, मंगलवार से उन्होंने उसके चेहरे पहचाने की मशक्कत शुरू की। पार्टी जॉइन कराने के बाद कन्नौज सांसद डिंपल यादव ने एसपी के नगर पदाधिकारियों को बुलाकर उनका परिचय कराया। इस दौरान पूनम नगर अध्यक्ष फाकिर सिद्दीकी, दीपक रंजन, नवीन धवन, सौरभ सहित दूसरे पदाधिकारियों से जान-पहचान की मशक्कत करती रहीं। सूत्रों की मानें तो आनन-फानन में उम्मीदवारी के चलते पर्चा भरने के लिए जरूरी औपचारिकताएं भी अभी पूरी नहीं हो सकी हैं। अभी बैंक खाता खोलने के लिए नूरा-कुश्ती जारी है। कांग्रेस व एसपी दोनों के ही उम्मीदवारों के पास प्रचार के लिए करीब 17 दिन ही बचे हैं।

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