राम मंदिर पर बदले साधु-संतों के सुर, अल्टीमेटम देने वाले अब क्यों हो गए चुप?

अयोध्या            
अध्योध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर संत और महंत ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए शनिवार को सम्मेलन किया. लेकिन वो राममंदिर के लिए सरकार को कोसने की बजाय सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं. वहीं, शिवसेना भी अब राममंदिर के मुद्दे पर मोदी के पीछे चलने को तैयार हो रही है.

इन्ही सवालों के चलते आजतक ने रामविलास वेदांती से बात की. राम मंदिर के लिए हमेशा अल्टीमेटम का झंडा बुलंद करने वाले रामविलास वेदांती, जो राममंदिर न्यास के सदस्य भी हैं, उन्होंने आजतक से कहा कि राममंदिर के निर्माण से पहले धारा 370 और 35A हमारे एजेंडे में है. उन्होंने आगे कहा कि इसके हटने के बाद राममंदिर बनेगा और 2024 के पहले इसका निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा. चित्रकूट के बड़े संत आचार्य रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्हें पक्की खबर है कि अगले 1 साल में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा.

इसके अलावा शिवसेना के बड़े नेता और सांसद संजय राऊत ने अयोध्या में आजतक से खास बातचीत में कहा कि "2024 के चुनाव में राममंदिर का मुद्दा खत्म हो चुका होगा और मोदी और योगी ही मंदिर बनाएंगे और शिवसेना उनके काफिले में साथ होगी."

विश्व हिंदू परिषद के संत सम्मेलन में आए आचार्य धर्मेंद्र ने जब 5 करोड़ मुस्लिम छात्रों के वजीफे और मुस्लिम लड़कियों की शादी के लिए मोदी सरकार की योजना पर प्रधानमंत्री मोदी को कोसना शुरू किया तो संत सम्मेलन में मंच पर बैठे संत और महंत असहज होने लगे कुछ ने टोका. कुछ के हाव भाव बता रहे थे कि नरेंद्र मोदी की आलोचना सुनने के लिए संत समाज तैयार नहीं है. जैसे ही आचार्य धर्मेंद्र ने अपना भाषण खत्म किया दूसरे संतों ने मोदी सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिए जिससे असहज होकर आचार्य धर्मेंद्र मंच से चले गए.

दरअसल वक़्त बदल चुका है. मोदी सरकार पिछली बार से ज्यादा बहुमत में है और मोदी सरकार के लिए प्रचंड और बाहुबली शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है, इस जीत ने मंदिर आंदोलन के मायने बदल दिए हैं. मोदी सरकार को अपने पिछले कार्यकाल में बहुमत होने के बावजूद राममंदिर के लिए हर मंच से आलोचना सुननी पड़ी थी. संत समुदाय का ऐसा कोई मंच नहीं था जिससे मोदी सरकार को चेतावनी और धमकी नहीं मिली हो.

लेकिन दूसरी बार प्रधानमंत्री पद संभालते ही उन तमाम लोगों के सुर बदल गए हैं, जो लगातार मंदिर मुद्दे पर मोदी और योगी सरकार को धमकाते और कोसते रहे. लेकिन वो अब न सिर्फ सरकार की सुन रहे हैं बल्कि अदालत के फैसले तक इंतजार करने को भी तैयार हैं. इन संतों और महंतों की मानें तो मोदी सरकार को अदालत के फैसले तक का वक्त दिया जाना चाहिए क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है और मोदी हैं तो मंदिर भी बनेगा, ये आम राय आम-संतों महंतों के बीच लगभग बन चुकी है.

बदल चुका है वक्त
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पिछले 6 महीने में दो बार अयोध्या आ चुके हैं और दोनों बार के तेवर बिल्कुल अलग-अलग हैं. पिछली बार नवंबर में जब उद्धव ठाकरे आए थे तो मंदिर पर मोदी सरकार को अल्टीमेटम देकर गए थे. इस बार जब आए तो इसी मंदिर मुद्दे पर साथ चलने का वादा करके गए हैं. इससे साफ है कि वक्त बदल चुका है. मंदिर से जुड़े चाहे साधु-संत हों या शिवसेना जैसी सियासी पार्टी सभी इस बात को समझ चुके हैं कि इस बार जनता ने मंदिर के नाम पर वोट नहीं दिया, ना ही मोदी सरकार ने मंदिर के मुद्दे को आगे रखकर वोट मांगा.

ऐसे में अब जबकि प्रचंड जीत के साथ पीएम मोदी सरकार में हैं तो इन साधु-संतों और सियासतदानों के लिए भी मोदी की लाइन पर चलना अब मजबूरी बन चुका है क्योंकि इन्हें मालूम है कि धमकी और अल्टीमेटम का असर न तो सरकार पर पड़ने वाला है और ना ही जनता पर. शनिवार को अयोध्या में संत सम्मेलन के मंच से उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने भी संतो के सामने लगभग यह साफ कर दिया कि सरकार फिलहाल अदालत के फैसले और मध्यस्थता की कोशिश, दोनों को आशा भरी नजरों से देख रही है.

अगर ये दोनों विकल्प फेल होते हैं तभी कानून या ऑर्डिनेंस का कोई विकल्प सामने आएगा. यानी अब साफ है अभी मंदिर पर कुछ इंतजार करना पड़ेगा और इसके लिए चाहे संत समाज हो या फिर शिवसेना दोनों खुशी-खुशी राजी दिखाई दे रहे हैं.

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