मेक इन इंडिया से था हर साल 2 करोड़ नौकरियों का लक्ष्य, कैसे होगा हासिल

 
नई दिल्ली  
   
साल 2014 में ही जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी तो इससे युवाओं को काफी उम्मीदें थीं. बीजेपी ने हर साल दो करोड़ नौकरियां के सृजन जैसे कई ऐसे वादे भी किए थे जिससे युवाओं ने उसे भरपूर वोट दिए. सरकार बनने के बाद पीएम मोदी ने देश के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने और रोजगार को बढ़ाने के लिए स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कई अभियान चलाए. लेकिन इन सबसे रोजगार के मोर्चे पर उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली है. अब बीजेपी के दूसरी बार सत्ता में आने पर फिर युवाओं को बड़ी उम्मीद है. देखना यह है कि इस बार मेक इन इंडिया जैसे योजनाओं को कारगर बनाने के लिए वित्त मंत्री क्या कदम उठाती हैं.

क्या है मेक इन इंडिया

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को ‘मेक इन इंडिया’ योजना की शुरुआत की थी. इसके जरिए 2020 तक 10 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य है. इसके लिए मोदी सरकार ने तय किया था देश की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 2022 तक 25 प्रतिशत किया जाएगा.

ये हुए हैं फायदे

'मेक इन इंडिया' के कारण देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर और टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बढ़ोतरी हुई है. डिफेंस सेक्टर में कई देश भारत में मेक इन इंडिया के तहत हथियारों का निर्माण कर रहे हैं.
 

लेकिन रोजगार के मोर्चे पर पिछली मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के साल 2017-18 में भारत में बेरोजगारी दर 45 साल के रिकॉर्ड स्तर पर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई. बीजेपी सरकार ने वादा किया था कि मेक इन इंडिया जैसे अभियानों से हर साल 2 करोड़ नौकरियों का सृजन होगा, लेकिन नौकरियों के सृजन का आंकड़ा लाखों में ही रहा.

नोटबंदी को मेक इंडिया के लिए सबसे बड़ा धक्का बताया गया. क्योंकि नोटबंदी से छोटे और मझोले उद्योगों की कमर टूट गई जिससे देश के MSME सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा. CMIE के आंकड़ों की मानें तो नोटबंदी के बाद साल 2018 में 1 करोड़ 10 लाख लोगों की नौकरी चली गई.

एक अनुमान के अनुसार हर महीने देश में 10 लाख से ज्यादा युवा रोजगार बाजार में आते हैं. इतने बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा करना सरकार के लिए खासा मुश्किल हो रहा है. मोदी सरकार Make In India के माध्यम से भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहती है. इसके तहत मोदी सरकार चाहती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की भागीदारी 17 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी की जाए. ऐसा करने पर 10 करोड़ नौकरियां पैदा होने के अनुमान था. लेकिन यह लक्ष्य फिलहाल बहुत दूर दिखता है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, 2018-19 में मेक इन इंडिया के तहत 2503 प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं.

क्या है समस्या

जानकार कहते हैं कि सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग और जीडीपी में वृद्धि दर से रोजगार पैदा करने में मदद नहीं मिलेगी. तथ्य तो यह है कि भारत सबसे तेज गति वाले अर्थव्यवस्थाओं में से है, लेकिन रोजगार सृजन उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ है. इसके लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी रोजगार सृजन के तरीके खोजने होंगे और रोजगार बढ़ाने के वैकल्पिक उपाय खोजने होंगे.

 मेक इन इंडिया की सफलता के लिए सरकार ने कई प्रयास किए, लेकिन योजना का असर उस स्तर का नहीं हुआ जितना सरकार ने दावा किया था. अब वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण से उम्मीद है कि ऐसे प्रयास करें कि जिससे इस योजना को और कारगर बनाया जा सके. 
 

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