मुजफ्फरपुर में मिले नरमुंड का रहस्य सुलझाने के लिए तीन दिन का समय, जांच शुरू

 नयी दिल्ली।
 
बिहार के मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल (एसकेएमसीएच) के नजदीक मिले नरमुंड के रहस्यों का पता लगाने के लिए मंगलवार से तीन सदस्यीय समिति ने शुरू कर दी है। इस अस्पताल में ज्यादातर उन मरीजों का इलाज किया जा रहा है जो चमकी बुखार (इनसेफलाइटिस) से पीड़ित हैं।

यह अस्पताल चमकी बुखार से जून में 140 बच्चों की मौत के चलते सुर्खियों में बना हुआ है। इस बुखार का मुख्य केन्द्र मुजफ्फरपुर है। मुजफ्फरपुर से डीएम आलोक रंजन घोष सोमवार को समिति का गठन करते हुए इसकी रिपोर्ट तीन दिन के भीतर जमा करने को कहा है।

एसकेएमसीएच की टीम ने शुरू की जांच, एक सदस्य बदले 

एसकेएमसीएच परिसर में नरमुंड व हड्डियों के मिलने की जांच सोमवार को एसकेएमसीएच के डॉक्टरों टीम ने शुरू कर दी। टीम में फार्माकोलॉजी विभागाध्यक्ष के डॉ. दीपक कुमार के बदले डॉ. चम्मन को शामिल किया गया है। टीम के सदस्यों ने परिसर में स्थित वन विभाग के मजदूर से पूछताछ की। उनसे कई बिंदु पर जानाकारी ली। पूछा कि कौन और किस दिन लाशें परिसर में जलाई गईं थीं। टीम ने सीसीटीवी फुटेज को भी खंगाला। 

नरमुंड और हड्डियां मिलने से सनसनी

व्यवस्था की दोष कहे इसे या किस्मत की मार। मरने के बाद एक तो किसी ने पहचान नहीं, दूजे पोस्टमार्टम के बाद अज्ञात बनी लाश को कफन तक नसीब नहीं हुआ। एसकेएमसीएच परिसर में बीते दिनों जलाई गईं अज्ञात लाशों के अंतिम संस्कार में धार्मिक रीति-रिवाजों को तिलांजलि दे दी गई। यहां ऐसा अक्सर होता है। 17 जून को भी वैसा ही हुआ। शव अमानवीय तरीके से जला दिये गये। सीएम के आगमन के ठीक पहले अहियापुर पुलिस की ओर से हुई ऐसी हीलाहवाली के बाद जब नरमुंड व हड्डियों के मिलने से सनसनी फैली तो सिस्टम के जिम्मेवारों की आंखे खुली। फिलहाल दो टीमें एक जिला प्रशासन की और दूसरी एसकेएमसीएच प्रशान की टीम जांच कर रही है। 

इस बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू है। पुलिस से लेकर एसकेएमसीएच प्रशासन तक अपने-अपने बचाव की मुद्रा में हैं। जांच रिपोर्ट आने और कार्रवाई होते तक दोनों महकमों में मची खलबली रुकने वाली नहीं है। 

शवदाह के लिए देते ठेका, बचा लेते मोटी रकम :

एसकेएमसीएच में लाशों को जलाने वाले एक मजूदर की बातों से पुलिस की पोल खुल रही है। सोमवार को उसने बताया कि जो राशि अंत्येष्टि के लिए पुलिस को दी जाती है उसमें से एक बड़ा हिस्सा सामूहिक दाह संस्कार के मार्फत बचा लिया जाता है। लाशों के संस्कार के लिए ठेका दिया जाता है। लाशों को शवदाह स्थल पर ले जाने और उसे जलाने के लिए पुलिस उसके जैसे मजदूरों को 12 सौ रुपये प्रति मजदूर भुगतान करती है। 

प्रशासन की ओर से 19 लाशें जलाने के लिए 38 हजार रुपये दिये गये थे। उक्त मजदूर ने खर्चे का हिसाब यूं बताया। 10 हजार रुपये की लकड़ी, 3000 रुपये का कपड़ा, पोस्टमार्टम हाउस से शवदाह स्थल तक शव ले जाने के लिए 3000 रुपये दिये गये। पूरी प्रक्रिया की पुलिस की ओर से वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करानी होती है। इसके लिए फोटोग्राफर को 1000 रुपये दिये गये। लगभग दस हजार मजदूरी पर खर्च हुए। 38 हजार में लगभग 27 हजार का ही खर्चा आया। अंत्येष्टि की रकम में से 11 हजार की बचत कर ली गई। मजदूर ने खुद का नाम पता बताने से इंकार किया, पर उसके खुलासे पर यकीं करें तो शवों के जलाने में अक्सर बड़ा खेल होता है। यह जांच का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। 

पुलिस लाशों के जमा होने का करती इंतजार :

एक रिटायर पुलिस अधिकारी राजेंद्र प्रसाद मंडल ने बताया कि अंत्येष्टि की राशि में भी कई स्तर पर खेल होता है। राशि कम होने की वजह से पुलिस लाशों को एक-एक कर नहीं जलवाती है। इसके लिए कई लाश के जमा होने का इंतजार करती है। एक लाश को जलाने में सात हजार रुपये तक का खर्च आता है। लेकिन, सामूहिक तौर पर दाह संस्कार से कुछ राशि बच जाती है।

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