महिला दिवस विशेष: ‘सांपों के देश’ में महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन रही सांप पकड़ने वाली एक महिला
बेलगावी
सदियों से भारत को 'सांप और सपेरों' का देश कहा गया है। दुनिया के कई हिस्सों में आज भी भारत को पिछड़ा बताने के लिए इसी उपमा का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या कोई सोच सकता है कि इन्हीं सांपों से बना संबंध 21वीं सदी में आधुनिकता, मानसिकता के विकास और सशक्तीकरण की मिसाल बन सकता है? समाज और सोच की बेड़ियों को तोड़ने में इन्हीं सांपों से नजदीकी एक हथियार बन सकती है?
पिछले 12 साल से निर्जरा चिट्टी कर्नाटक के बेलगावी में एक ऐसा काम करती आ रही हैं जिसे देखकर लोग हैरान रहे जाते हैं। वह कभी किसी खेत तो किसी मैदान में तेजी से रेंगते हुए सांप को बिजली की तेजी से दौड़कर पकड़ लेती हैं। इस दौरान उनके चेहरे पर न डर होता है, न झिझक। हां, देखने वालों के मुंह खुले के खुले जरूर रह जाते हैं।
5 साल की ट्रेनिंग और पीछे छूटा डर
निर्जरा के पति आनंद को सांपों से हमेशा से प्यार था। कहीं सांप पकड़े जाते तो उनका ध्यान उसे सही-सलामत निकालने पर होता था। शादी के बाद पति की हर 'ट्रिप' पर निर्जरा भी साथ जाने लगीं। सांपों को देखते-देखते उन्होंने भी उस जीव को पकड़ने की ट्रेनिंग शुरू कर दी जिसे देखकर अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत में निर्जरा ने बताया कि उनके पति ने उन्हें 5 साल तक ट्रेनिंग दी। उनका डर खत्म होने लगा और आज वह इतनी परिपक्व हैं कि अकेले ही निकल पड़ती हैं लोगों को सांपों से, और सांपों को लोगों से बचाने। निर्जरा ने बताया कि उन्हें इतना ज्यादा काम मिलता है कि पति-पत्नी को अलग-अलग जाना ही पड़ता है। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले ही दोनों ने मिलकर 12 सांप पकड़े थे।