महाराष्ट्र में ‘जय भीम-जय मीम’ के लिए कितनी कठिन है सियासी डगर

 
नई दिल्ली

महाराष्ट्र में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के चीफ असदुद्दीन ओवैसी और दलित नेता प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अगाड़ी (वीबीए) ने मिलकर 'जय भीम-जय मीम' का नारा दिया था. इस कवायद ने महाराष्ट्र में तीन दशक पहले अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान और दलित नेता जोगेंद्र कवाडे के दलित-मुस्लिम गठजोड़ की याद ताजा कर दी. महाराष्ट्र में यह कोशिश जमीन पर अपनी जड़ें जमाने से पहले ही बिखरती नजर आ रही है. लोकसभा चुनाव में मिलकर चुनाव लड़ने वाले ओवैसी और अंबेडकर ने विधानसभा चुनाव में अलग-अलग लड़ने का फैसला किया है.

क्या है मुस्लिम और दलित आबादी का समीकरण
महाराष्ट्र में 14 फीसदी दलित और 12 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इन दोनों समुदाय के सहारे सत्ता पर काबिज होने के लिए कई राजनीतिक दलों के द्वारा आजमाइश की  है. दलित-मुस्लिम एकजुट करने के लिए अब तक कई नेताओं ने कोशिशें की, लेकिन कोई भी इसे धरातल पर नहीं उतार सका है. ऐसे में ओवैसी और अंबेडकर की सियासी दोस्ती में आई दरार से विधानसभा चुनाव में दलित और मुस्लिम दोनों मायूस नजर आ रहे हैं. इस तरह 'जय भीम-जय मीम' के नारे की पूरी तरह से हवा निकलती नजर आ रही है.

गठबंधन टूटने से वोट के बिखराव का खतरा
AIMIM के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष इम्तियाज जलील कहते हैं, 'प्रकाश अंबेडकर के साथ गठबंधन टूटने से दलित और मुस्लिम वोटों का बिखराव होगा और इसका नुकसान दोनों पार्टियों को उठाना पड़ेगा.' हालांकि गठबंधन टूटने के लिए AIMIM प्रकाश अंबेडकर को जिम्मेदार ठहरा रही है. जबकि प्रकाश अंबेडकर मानते हैं कि ओवैसी की जिद और सीट की ज्यादा डिमांड के चलते गठबंधन टूटा है. साथ ही उन्हें लगता है कि गठबंधन की अभी पूरी तरह से संभावना खत्म नहीं हुई हैं.

बता दें कि इसी साल लोकसभा चुनाव में प्रकाश अंबेडकर के साथ मिलकर ओवैसी की पार्टी AIMIM  महाराष्ट्र की औरंगाबाद संसदीय सीट जीतने में कामयाब रही थी. साथ ही प्रदेश में 14 फीसदी वोट हासिल करके इस गठबंधन ने सबको हैरान कर दिया था. ओवैसी-अंबेडकर गठबंधन के चलते महाराष्ट्र की 12 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी को हार का मुंह देखना पड़ा.

विधानसभा में कर सकते थे बड़ा उलटफेर
राजनीतिक विश्लेषक संजीव चंदन कहते हैं कि महाराष्ट्र में दलित और मुस्लिम दोनों समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालत एक जैसी है, लेकिन कई बार ये भी देखा गया है कि दोनों समुदाय एक दूसरे के आमने-सामने आ जाते हैं. साथ ही महाराष्ट्र में दोनों समुदाय का नेतृत्व करने वाले लोग भी ऐसे फैसले ले लेते हैं, जिसके चलते दोनों समुदाय एक साथ नहीं आ पाते. ऐसे में प्रकाश अंबेडकर की जिम्मेदारी बनती है कि दलित-मुस्लिम एकजुटता के लिए बड़ा दिल दिखाएं.

संजीव चंदन कहते हैं कि अंबेडकर और ओवैसी का गठबंधन लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकता हैं. ओवैसी की पार्टी ने कई छोटे स्तर के चुनावों में भी जीत हासिल की है. औरंगाबाद नगर पालिका में AIMIM के 25 पार्षद जीतने में सफल रहे. मराठवाड़ा के मुस्लिम समाज में पार्टी की पकड़ अच्छी है, ऐसे में दलित समुदाय के साथ मिलकर वो बड़ा राजनीतिक उलटफेर कर सकती थी.

बीजेपी की मदद का लगता रहा है आरोप
प्रकाश अंबेडकर और असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ एक गंभीर इल्जाम अक्सर लगाया जाता है कि ये दोनों नेता दूसरी पार्टियों का वोट काटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाते हैं. हालांकि दोनों नेता इससे इनकार करते हुए कहते हैं कि वो अपनी विचारधारा के मुताबिक राजनीति करते हैं, इससे अगर किसी दल को फायदा मिलता है तो ये उनकी चिंता नहीं है.

दलितों के वोट से होता है बीजेपी को फायदा
अधिवक्ता फिरदौस मिर्जा कहते हैं कि महाराष्ट्र में दलित समुदाय दो तरह का है. इनमें एक अंबेडकरवादी है तो दूसरा हिंदुत्ववादी. हिंदुत्व की तरफ झुकाव रखने वाला दलित समुदाय बीजेपी और शिवसेना के साथ मजूबती से जुड़ा हुआ है. इसके अलावा महाराष्ट्र में अंबेडकरवादियों की कई पार्टियां हैं, जिनमें से रामदास अठावले गुट पहले से ही बीजेपी के साथ है. इसके अलावा बसपा और प्रकाश अंबेडकर सहित तमाम दल हैं, जिनके बीच दलित वोट बंटने की संभावना है.

महाराष्ट्र की सियासत पर नजर रखने वाले लेखक सम्भाजी भगत कहते हैं कि महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक माहौल में दलित-मुस्लिम दोनों एकजुट होना चाहते हैं. लेकिन प्रकाश अंबेडकर और ओवैसी के अपने राजनीतिक एजेंडे हैं, जिनके चलते दोनों अलग हुए हैं. अब दलित-मुस्लिम समुदाय के सामने सवाल खड़ा हो गया है कि वो कहां जाए? माना जा रहा है कि बड़ा तबका कांग्रेस-एनसीपी की ओर रुख कर सकता है. प्रकाश अंबेडकर का साथ छोड़कर उनका कैडर खुलेआम कांग्रेस में जा रहा है.

मुसलमानों की कोई राजनीतिक समझ नहीं
महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता अमिर अली एजाज कहते हैं कि महाराष्ट्र का दलित समुदाय देश के बाकी राज्यों के दलितों से ज्यादा राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक रूप से सजग है. जबकि मुस्लिम समुदाय की अपनी कोई सामाजिक और राजनीतिक सोच दिखाई नहीं देती. इसीलिए दोनों समुदाय के बीच महाराष्ट्र में कोई एकजुटता नहीं बन पा रही है. 

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