पॉलीथिन के दुष्प्रभाव को रोकने बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन के प्रोटोटाइप किया तैयार

जबलपुर
पॉलीथिन के बढ़ते दुष्प्रभाव से देश के साथ पूरी दुनिया चितिंत है,जिसे देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगल यूज्ड प्लास्टिक का उपयोग न करने की अपील भी लोगो से कर रहे है।वही दूसरी और  सिंगल यूज्ड प्लास्टिक के बढ़ते दुष्प्रभाव को रोकने के लिए जबलपुर की रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने एक नई कवायद की है।इस कवायद के चलते रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन के प्रोटोटाइप को तैयार किया है जिसमें लगभग दो साल से ज्यादा का वक्त इस अनुसंधान में लगा है।इस बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन के प्रोटोटाइप को तैयार किया है मृदुल शाक्या ने।

अनुसंधान में बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन का निर्माण आलू और मक्के से निकलने वाले स्टार्च से किया गया है।इस पॉलीथिन की विशेषता यह होगी कि यह पानी में जाते ही तीन घंटे के अंदर स्वत: घुल जाएगी इतना ही वह पानी भी पूरी तरह पीने लायक होगा। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के बॉयो डिजाइन इनोवेशन सेंटर (डीआईसी) की ओर से इसे तैयार किया गया है।प्रदेश में बायोडिग्रेडेबल पॉलीथिन का प्रोटोटाइप तैयार करने वाला पहला विश्वविद्यालय रानी दुर्गावती है।इस सफलता को देखते हुए पॉलीथिन के तैयार किए गए प्रोटोटाइप को अब पेटेंट कराने की तैयारी में विश्वविद्यालय प्रशासन जुटा हुआ है।

रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी को जिस पॉलीथिन का विकल्प तैयार करने में सफलता मिली है यह जांच के दौरान सौ फीसदी खरा उतरा  है।इसे जमीन या गड्ढे में भी अगर छोड़ दिया जाता है तो यह करीब 25 से 30 दिन के अंदर अपने आप पूरी तरह अपघिटत हो जाएगी। इस पॉलीथिन को डीआईसी की लैब में विभिन्न आधुनिक मशीनों के माध्यम से तैयार किया गया है।इसका उपयोग कोई भी कंपनी पॉली बैग बनाने में कर सकती है।इस आधुनिक जमाने की पॉलीथिन को तलाशने के विषय मे डीआईसी के डायरेक्टर प्रो एसएस संधू बताते है कि इस पॉलीथिन को लेकर दो सालों से हम अनुसंधान कर रहे थे और आखिरकार हमने इसका प्राकृतिक प्रोटोटाइप तैयार कर ही लिया।

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