पीएम मोदी के ऑफर पर पवार का खुलासा- मैं समझ गया था उनकी मंशा

 
नई दिल्ली 

 एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने  बातचीत में बीजेपी-एनसीपी गठबंधन को लेकर दिए गए पीएम के ऑफर पर बड़ा खुलासा किया है. पवार ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री से दूसरे कारणों की वजह से मिला था. इस दौरान प्रधानमंत्री ने मिलकर काम करने की इच्छा जताई. पवार ने यह बात भी स्पष्ट की कि बातचीत के दौरान पीएम ने एनडीए के साथ जुड़ने का जिक्र नहीं किया लेकिन मैं उनकी मंशा समझ गया था.

पवार ने पीएम को दिया था यह जवाब
पवार ने आगे कहा कि मैंने उनसे कहा कि हमने चुनाव एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा था. प्रधानमंत्री मेरा मतलब समझ गए. सुप्रिया को दिल्ली में मंत्री पद दिए जाने के सवाल पर पवार ने कहा कि यह बात तो पिछले पांच साल से चल रही है. एनसीपी की आइडियोलॉजी पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि 1958 से मैं कांग्रेस का सदस्य रहा. मैंने कई पदों पर काम किया. दुर्भाग्य से हमने अलग-अलग पार्टियां बना लीं. महाराष्ट्र को लेकर हम पिछले 15 वर्षों से एकसाथ हैं.

पवार ने दिया वाजपेयी सरकार का उदाहरण
गठबंधन में वैचारिक विरोधाभास से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए शरद पवार ने कहा कि 2004 में ममता बनर्जी और जॉर्ज फर्नांडिस वाजपेयी सरकार में थे. दोनों ही बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ थे. वाजपेयी ने उनसे कहा कि मैं अपनी पार्टी के मसले अलग रखता हूं और वाजपेयी ने सरकार चलाई.

पवार बोले- कोई रिमोट कंट्रोल नहीं
जब उनसे पूछा गया कि क्या महाराष्ट्र की उद्धव सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के पास रहेगा तो उन्होंने साफ कहा कि नहीं निश्चित रूप से नहीं… कोई नियंत्रण नहीं. कोई रिमोट नहीं. जब उद्धव सीएम बने हैं, तो हमें उन्हें पूरा अधिकार देना है. शपथ ग्रहण के बाद से मैंने कुछ भी नहीं कहा है.

बंटवारे का झगड़ा एनसीपी-कांग्रेस के बीच
मंत्रालय बंटवारे से जुड़े सवाल पर पवार ने कहा कि एनसीपी और शिवसेना के बीच कोई झगड़ा नहीं है. यह कांग्रेस और एनसीपी के बीच है. एनसीपी के पास सेना से दो कम और कांग्रेस से 10 सीट ज्यादा है. शिवसेना के पास मुख्यमंत्री और कांग्रेस के पास स्पीकर. मेरी पार्टी को क्या मिला. डिप्टी सीएम के पास कोई अधिकार नहीं होता.

सरकार गठन पर भी खुल कर बोले पवार
सरकार गठन पर बात करते हुए शरद पवार ने कहा कि शुरुआत में एनसीपी विपक्ष में बैठने के पक्ष में थी. लेकिन जब सेना ने जब यह कहना शुरू किया कि बीजेपी अपनी बात का मान नहीं रख रही तो मुझे महसूस हुआ कि अब सेना वापसी के मूड में नहीं है. मैं जानता हूं कि सेना ने अगर एक बार गठबंधन तोड़ने का मन बना लिया तो उस फैसले पर अडिग रहेगी.

अजित पवार के अलग फैसले को लेकर उन्होंने कहा कि फडणवीस के साथ अजित का शपथ लेना मेरे लिए झटका था. सबसे पहले मैंने अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर सारे विधायक वापस इकट्ठा किए. विधायकों को बताया गया था कि अजित के इस कदम को मेरा समर्थन है, लेकिन मेरा उस कदम में कोई हाथ नहीं था.

इस वजह से अलग हुए थे अजित पवार
जब उनसे पूछा गया कि अजित पवार ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि मुझे लगता है कि अजित पवार ने अपने आकलन के कारण बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया होगा कि गठबंधन बन नहीं पाएगा. हालांकि अब अजित पवार परिवार में वापस आ चुके हैं. अजित पवार के पद को लेकर फैसला अभी बाद में होना है. अजित पवार एक मजबूत नेता हैं. उन्होंने पार्टी के लिए कठिन मेहनत की है. वे कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे हैं. उन्होंने अपनी गलती मान ली है.

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