पढ़ रहीं-बढ़ रहीं बेटियां, बाल विवाह की बलि चढ़ने में 51% की गिरावट

 
नई दिल्ली 

देश में पिछले 19 सालों में 15 से 19 साल से उम्र की लड़कियों की शादी में 51% की गिरावट आई है. यह सब संभव हुआ है नीतिगत फैसलों को लागू करने से, कानूनों में बदलाव, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा और लोगों को जागरूक करने से. सिर्फ इतना ही नहीं, बच्चों की सेहत, शिक्षा और शादी जैसे मानकों में भी सुधार हुआ है. ये खुलासा हुआ है सेव द चिल्ड्रेन एनजीओ (Save The Children) की वार्षिक रिपोर्ट ग्लोबल चाइल्डहुड इंडेक्स (Global Childhood Index) में.

रिपोर्ट के अनुसार, चाइल्डहुड इंडेक्स में भारत की रैंकिंग भी सुधरी है. भारत के प्रदर्शन में 137 अंकों का सुधार आया है. पहले भारत का चाइल्डहुड इंडेक्स 632 था. अब यह 769 अंकों पर आ गया है. बाल विवाह के मामलों में आई गिरावट से किशोरियों के मां बनने की संख्या में करीब 20 लाख की कमी आई है. भारत में किशोरों के मां-पिता बनने के दर में भी 63% की गिरावट दर्ज हुई है. बाल मृत्यु दर में 57% की कमी आई है.

5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत में 70% की गिरावट

साल 2000 में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या करीब 13 लाख थी. जो 2019 तक कम होकर 384,000 हो गई है. यानी 70% की गिरावट. लेकिन नवजात मृत्यु के मामले सिर्फ 52 फीसदी गिरावट दर्ज हुई है.
बालश्रम में 70 प्रतिशत की कमी

5 से 14 साल के बच्चों को बालश्रम से बाहर निकालने के मामले में भारत ने बड़ी सफलता हासिल की है. पिछले 19 सालों में बालश्रम में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई.
कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों की संख्या मे 60% की गिरावट

कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों की संख्या मे 60% की गिरावट आई है. अभी यह संख्या 14 लाख है, जबकि 2000 में 35 लाख लड़कियां कम उम्र में मां बनती थीं. यदि स्थिति में सुधार नहीं आया होता तो भारत में करीब 90 लाख लड़कियों की कम उम्र में ही शादी हो गई होती.
ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों की विवाह दर अब भी शहरों से दोगुनी

बच्चों के लिए मौजूद सेहत संबंधी सुविधाएं, शिक्षा, पोषण जैसे मानकों पर 176 देशों में अध्‍ययन किया गया. पिछले 19 वर्षों में 173 देशों में किशोरों से संबंधित हालातों में सुधार आया है. लेकिन, देश के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह अब भी बड़ी समस्या है. जहां शहरी इलाकों में किशोरियों की विवाह दर 6.9% है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह लगभग दोगुनी 14.1% है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों का जीवन सुधारने में भारत ने काफी काम किया है, लेकिन जब तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर को खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बढ़ी रहेगी.

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