‘त्रिपुष्कर’ को प्राचीनतम वाद्ययंत्र की मान्यता मिली

 लखनऊ 
त्रिपुष्कर वाद्ययंत्र, जिसे पंडित शारंग देव ने अव्यवहारिक बताते हुए अपने शास्त्र संगीत रत्नाकर में उसका वर्णन करने से मना कर दिया था, तबला कलाकार व भातखंडे के शिक्षक सारंग पांडेय ने न सिर्फ उसका पुनर्निर्माण किया, बल्कि केंद्र सरकार से मान्यता भी दिला दी।

भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित अनवद्ध वाद्य ‘त्रिपुष्कर’ को भारत सरकार ने सबसे पुराने वाद्य यंत्र के रूप में दर्ज किया है। श्री पांडेय ने बताया कि 28 मार्च को आवेदन किया था। शोध कराने के बाद केंद्र सरकार ने उसे सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र की मान्यता दी। 

 नाट्य शास्त्र के बाद पहली बार आया स्वरूप में: संगीत रत्नाकर के रचनाकार पंडित सारंग ने बारहवीं तेरहवी शताब्दी में अपनी रचना में त्रिपुष्कर को अप्रायोगिक व बहुत ही जटिल बताया था। भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में त्रिपुष्कर का विस्तार से वर्णन मिलता है। 

सालों की मेहनत के बाद तैयार हुआ था त्रिपुष्कर 
त्रिपुष्कर को तैयार करने में काफी रिसर्च व मेहनत करनी पड़ी। भातखंडे सम विवि में शिक्षक सारंग पांडेय ने कई महीने तक देश के कई हिस्सों में जाकर इसकी जानकारी एकत्र की। उसके बाद एक कुम्हार की मदद से 35-35 किलो के तीन पार्ट बनाए गए। इनमें एक अवाकृति, दूसरा हरितिकी और तीसरा गौ पूछ आकार का है। यह 105 किलो का वाद्ययंत्र है। श्री पांडेय ने बताया कि त्रिपुष्कर देश व विदेश के सभी अनवद्ध वाद्य का पितामह है।  

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