जानलेवा निपाह वायरस का बीयू के विद्यार्थियों ने खोज टीका  

भोपाल 
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स विभाग के दो विद्यार्थियों ने जनलेवा वायरस निपाह की वैक्सीन किस प्रकार तैयार की जा सकती है। इसका खाका तैयार कर लिया है। निपाह वायरस के प्रहार से केरल राज्य में पिछले वर्ष करीब डेढ दर्जन मौतें हुई थीं। अब भविष्य में ये वायरस असरकारक नहीं हो, जिसके लिए एमएससी द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी शैलजा सिंघल और उत्संग कुमार ने एक साल की कड़ी मेहनत से ये उपलब्धि हासिल की है। उसके वैक्सीन के निर्माण की ओर एक कदम आगे बढ़ा दिया हैे।

इस आधुनिक युग में जहाँ एक ओर उन्नत तकनिकी विकास हुआ है। वहीं दूसरी तरफ आये दिन दुनिया में नए-नए जानलेवा संक्रमण आ रहे हैं। गत वर्ष मई-2018 में निपाह वायरस से केरल में करीब डेढ दर्जन मौतें हुई थीं। निपाह एक आरएनए वायरस है, जो हनीपावाइरस जाति के पैरामिक्सोंविरिडी परिवार से सम्बंधित है। जेनेटिक्स विभाग के प्रोफेसर रेखा खंडिया एवं विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार मुंजाल के मागदर्शन में एमएससी विद्यार्थी शैलजा सिंघल एवं उत्संग कुमार ने एक साल पहले रिसर्च वर्क शुरू किया था। विद्यार्थियों के इस शोध को विज्ञान की अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्रिका फ्रंटियर्स ने प्रकाशित किया है। इस शोध से दोनों विद्यार्थियों को साथी विद्यार्थियों व प्रोफेसरों से बधाईयाँ मिल रहीं हैं। 

न्यूक्लियोटाइड आधार पर रिसर्च 
निपाह वायरस के लिए बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स एवं बायोकेमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर एवं छात्रों ने निपाह वायरस के जीन्स का विश्लेषण न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों के आधार पर किया है। जैव- सूचना विज्ञान की मदद से किसी भी वायरस संक्रमण के प्रति संवेदनशील जीव प्रजातियों का अनुमान लगाया जा सकता है। निपाह के जीन अनुक्रम का जब मनुष्य व मनुष्य के सम्पर्क में रहने वाले जीवों जैसे- चमगादड़, कुत्ता, बिल्ली, घोडा, सूअर, स्क्वीरल मंकी एवं अफ्रीकन ग्रीन मंकी के साथ तुलनात्मक विश्लेषण किया गया तो पाया गया कि कुत्तों में निपाह वायरस संक्रमण की सम्भावनायें काफी कम है। वहीं अफ्रीकन ग्रीन मंकी में संक्रमण की सम्भावनायें काफी ज्यादा है। 

इस अध्ययन के परिणाम वायरसों के अध्ययन हेतु उपयुक्त प्रायोगिक पशु मॉडल चुनने में अत्याधिक सहायक होगा एवं साथ ही विभाग द्वारा उन्नत तकनीक द्वारा विभिन्न टीकों के विकास में भी सहायक होगी । इसके अतिरिक्त किसी बीमारी के संक्रमण के लक्षण यदि दिखाई नहीं भी दे रहे हैं। तब भी इंसानों व अन्य जंतुओं के जीन के अनुक्रम को रोगकारक के जीन अनुक्रम से तुलनात्मक अध्ययन के पश्चात् कौन सी जीव प्रजातियाँ बीमारी के लक्षण दिखाए बिना रोगवाहक का कार्य कर सकती है यह पता लगाया जा सकता है। 

ये हैं निपाह के लक्षण 
निपाह से ग्रसित होने पर पहले लक्षण के तौर पर शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। इसके बाद उसके सिर में दर्द होना शुरू होता है और बाद में मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। अंतिम चरण में पहुंचने के बाद संक्रमित प्राणी के श्वसन तंत्र बुरी तरह
प्रभावित होता है। इससे मनुष्य के साथ जानवरों तक की मृत्यु हो जाती है। 

मलेशिया से शुरू हो हुआ था निपाह का सफर 
सबसे पहले मलेशिया में निपाह के लक्षण 1998 में पाए गए थे। यहां करीब 265 लोगों से 105 की मौत हुई थीं। बांग्लादेश में2004  में 35 लोग निपाह के शिकार होने पर मृत पाये गए थे। भारत में दस जून 2018 में निपाह के प्रहार से 18 लोगों की मौत हुई थी। इसके पहले भारत में 2001 में 45, 2007 में पांच लोग निपाह से ग्रसित होकर मृत्यु के गाल में समा गये थे। 

कैसे हुआ निपाह का जन्म 
निपाह वायरस चमगादड़ की मूत्र और लार में पाया जाता है। चमगादड जब फलों को खाते हैं तो फल उनकी लार से संक्रमित हो जाते हैं, इसका सेवन करने से मनुष्य और जानवर निपाह वायरस से ग्रसित होकर मौत के अंतिम चरण तक पहुंच जाते हैं। जेनेटिक्स विभाग में कम्प्यूटर विश्लेषण के द्वारा अन्य रोग कारकों के टीके विकसित करने की दिशा में रिवर्स जेनेटिक्स के माध्यम से कार्य हो रहा है े साथ ही विभाग में कैंसर की रोकथाम व खून की जाँच द्वारा कैंसर का पूवार्नुमान लगाया जा सके और एंटी – कैंसर दवाईयां कितना असर कर रहीं हैं यह पता लगाने की दिशा में शोध कार्य जारी है। लिंक पर क्लिक कर विद्यार्थी का शोध पत्र पढ़ सकते  हैं। 
 
लिंक: https://www.frontiersin.org/articles/10.3389/fmicb.2019.00886/full

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