क्या, पूरा हो पाएगा मायावती के प्रधानमंत्री बनने का सपना?

 
लखनऊ

भाजपा-कांग्रेस के बाद बसपा देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। 2014 में एकेले चुनाव लडऩे वाली बसपा इस लोकसभा चुनाव में कई पार्टियों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और रालोद के साथ उसका गठबंधन है। पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी वह क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2014 में बसपा को भले ही एक भी सीट न मिली हो लेकिन इस बार वह किंग मेकर के रूप में उभर सकती है। 
 PM बनी तो उत्तर प्रदेश की तर्ज पर करूंगी देश का विकास: मायावती 
मायावती के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा किसी से छिपी नहीं है। बसपा कार्यकर्ताओं के अलावा देश के करोड़ों दलित मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। खुद मायावती भी अपने आपको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानती हैं। उनका कहना है कि अगर केंद्र में सरकार चलाने का मौका मिला तो वह उत्तर प्रदेश की तर्ज पर देश का विकास करेंगी। यह बात उन्होंने विशाखापत्तनम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही, लेकिन इन सब के बीच एक बात जानकर हैरानी होगी कि अब पहले चरण का मतदान होने में मात्र कुछ ही दिन बाकी हैं और उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती की एक भी रैली राज्य में नहीं हुई हैं। हालांकि उन्होंने अब तक पांच रैलियों को संबोधित किया है जिनमें ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तराखंड हैं। वहीं आगे जो उनकी रैलियों का कार्यक्रम है उनमें छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।  

सपा-बसपा गठबंधन से बीजेपी की राह कठिन 
राजनीति में कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता यू.पी. से होकर जाता है और पिछले चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रदेश से 71 सीटें जीती थीं और 2 सीटें उसके सहयोगी अपना दल को मिली थीं। लेकिन इस बार सपा व बसपा के गठजोड़ के कारण उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए राह कठिन नजर आ रही है।
 PM पद की सबसे प्रबल दावेदार हैं मायावती
बीएसपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मायावती चुनाव के बाद खुद को बड़ी भूमिका में देख रही हैं और खुद को पीएम पद की सबसे प्रबल दावेदार मानती हैं। विशाखापत्तनम में जब उनसे पीएम पद को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका कहना था कि यह उनके लिए कोई नहीं बात नहीं है। उन्होंने कहा, 'मैं चार बार मुख्यमंत्री रही हूं। मेरे पास बहुमत है। जब चुनाव के नतीजे आएंगे तो देखा जाएगा'। एक तरह देखा जाए तो यह पहला मौका है जब मायावती जब उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए खुद की इच्छा जारी की है या फिर यह कह लें कि उत्तर प्रदेश से बाहर वह सीटों के लिए लड़ रही हैं। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने 503 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और उत्तर प्रदेश तक में वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 
 अखिलेश का भी मिला समर्थन 
इस बार मायावती ने अखिलेश, आंध प्रदेश में पवन कल्याण की जन सेना और छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ गठबंधन किया है। मायावती के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा का सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी सम्मान किया है। उन्होंने कहा, 'उत्तर प्रदेश ने कई प्रधानमंत्री दिए हैं मुझे खुशी होगी अगर राज्य से कोई प्रधानमंत्री बनता है।' गठबंधन के साथ ही भले ही उनका समर्थन करें, लेकिन मायावती को पहले अपनी ही पार्टी के वोटबैंक को सुधारना होगा।  
 पिछले लोकसभा चुनाव में BSP का वोट शेयर
पिछले लोकसभा चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर 4.19 प्रतिशत था वहीं साल 2009 के लोकसभा चुनाव में 6.17 प्रतिशत था। इस चुनाव में बीएसपी ने 500 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जिसमें 20 उत्तर प्रदेश थीं जबकि एक सीट मध्य प्रदेश से थी। इससे पहले सिर्फ 1996 के लोकसभा चुनाव में ही बीएसपी को उत्तर प्रदेश से बाहर सीटें मिली थी। जिसमें पंजाब से तीन, मध्य प्रदेश से दो जबकि उत्तर प्रदेश से 6 सीटें मिली थीं। कभी पार्टी के लिए गढ़ रहे उत्तर प्रदेश में हालत लगातार बिगड़ती जा रही है। साल 2009 के चुनाव में जहां 27.42 प्रतिशत वोटों के साथ बीएसपी को 20 सीटें मिली थीं वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 19.82 वोट मिले और एक भी सीट नहीं जीत पाई। आपको जानकारी हैरानी होगी कि 17 आरक्षित सीटो में 6 पर बीएसपी तीसरे नंबर पर रही थी। वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 19 ही सीट जीत पाई थी। उसके खाते में 22 फीसदी वोट आए थे।

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