क्या जनमत को प्रभावित कर रहा है सोशल मीडिया?
नई दिल्ली
कुछ समय पहले की बात है। चुनाव में मीडिया मैनेजमेंट का काम करने वाली एक कंपनी को एक राजनीतिक दल ने एक खास इलाके में लोगों के वोट को अपने पक्ष में मोड़ने का जिम्मा दिया। कंपनी ने उस इलाके में रहने वाले सभी वोटरों के प्रोफाइल इकट्ठा किया। उनकी पसंद और नापंसद को डिकोड किया। इसके बाद उनकी टाइम लाइन और वॉट्सऐप पर उनकी पसंद के पोस्ट ज्यादा से ज्यादा भेजने शुरू किए। बाद में पोस्ट के कॉन्टेंट को कुछ बदल दिया गया और उस खास दल से जोड़ कर पोस्ट भेजे जाने लगे। सिर्फ 5 महीनों में लगभग 90 फीसदी लोगों का ब्रेनवॉश करने की कोशिश मीडिया मैनेजमेंट कंपनी ने की।
प्रिवेसी पर हमला
क्या सोशल मीडिया देश के वोटरों के मिजाज को प्रभावित कर सकता है और उन्हें किसी धारा या पार्टी की ओर मोड़ सकता है? क्या सोशल मीडिया चुनाव के दौरान वोटरों के बीच प्रचार करने और प्रभावित करने का सबसे मजबूत आधार बन गया है? क्या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के दौरान आम लोगों की प्रिवेसी पर भी हमला हो रहा है? कितना सही और कितना गलत है सोशल मीडिया का इस्तेमाल? ये तमाम सवाल एक बार फिर उठे हैं। साथ ही आम चुनाव के दौरान सोशल मीडिया को लेकर विवाद भी खड़े हुए हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने इस बार अपनी ओर से सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के कई तरीके अपनाएं हैं। जानकारों का मानना है कि चुनाव आयोग की इस पहल के बाद भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण कर पाना नामुमकिन है।
हो रही है कार्रवाई
सोशल मीडिया पर दबिश होने के बाद चुनाव को प्रभावित करने वाले और फेक न्यूज से जुड़े कॉन्टेंट को हटाने की दिशा में बड़ी कार्रवाई हुई है। चुनाव आयोग के निर्देश पर अब तक 628 कॉन्टेंट सोशल मीडिया से हटाए गए हैं। इसमें सबसे ज्यादा 574 फेसबुक पेज हैं। वहीं फेसबुक ने अपने स्तर पर 700 से ज्यादा पेज को डिलीट किया है। ये पेज गलत सूचना की मदद से वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। इनमें सभी दल से जुड़े पन्ने थे।
डेटा का कैसे होता है इस्तेमाल
बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने कहा कि वह अपने स्तर पर वॉट्सऐप ग्रुप और फेसबुक पेज बनाते हैं। फिर उसे सब-सेक्शन में बदल देते हैं। ये शहर, क्षेत्र या समुदाय के अनुसार होते हैं। इसके बाद इसमें ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को जोड़ते हैं ताकि वे पार्टी से जुड़ी बातों को समझ सकें। पार्टी के सपोर्ट में एक फेसबुक पेज चलाने वाले व्यक्ति ने कहा कि वह हर दिन 10 लाख लोगों तक अपने पोस्ट के साथ पहुंचते हैं। इसमें कम-से-कम आधे सक्रिय होते हैं। शुरू में पिछड़ने के बाद हाल के दिनों में कांग्रेस ने भी अपनी ओर से डेटा के इस्तेमाल करने की परंपरा शुरू की। पहली बार पार्टी के अंदर डेटा-रिसर्च विंग बनाया गया है। चुनाव विश्लेषकों के अनुसार पहले भी डेटा के रिसर्च की जरूरत होती थी, लेकिन इतने साधन नहीं थे।
चुनाव आयोग के हैं ये नियम
• गूगल अपने प्लैटफॉर्म पर राजनीतिक दलों की ओर से किए गए प्रचार की लिस्ट बनाएगा और चुनाव आयोग को हर दिन उसकी रिपोर्ट देगा। 'गूगल' चुनाव के दौरान इसके लिए अलग सिस्टम बनाएगा।
• सोशल मीडिया पर होने वाले हर खर्च के बारे में राजनीतिक दलों को बताना होगा। इसके लिए पूरी जानकारी फॉर्म में भरनी होगी।
• चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद वोटिंग से 48 घंटा पहले सोशल मीडिया का उपयोग प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता। इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियां अपने स्तर पर भी मॉनिटरिंग करेंगी।
• सोशल मीडिया पर अगर कोई उम्मीदवार या नेता 'हेट स्पीच' पोस्ट करता है तो वह भी कार्रवाई के दायरे में आएगा।
अमेरिका और यूरोप में भी उठा विवाद
सोशल मीडिया से चुनाव को प्रभावित करने की बात पहली बार नहीं हो रही है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक में हुई। आरोप लगा कि चुनाव एजेंसियों ने सोशल मीडिया खासकर फेसबुक के डेटा का उपयोग चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया। इससे जुड़ा केस भी इंग्लैंड की संसद में चल रहा है। ट्रंप के चुनाव में भी इस तरह के आरोप लगे हैं।
ऐसे होती है ट्रैकिंग, ऐसे होता है विश्लेषण
चुनावों में काम करने वाली एक एजेंसी के अनुसार फेसबुक प्रोफाइल को डिकोड करने का एक फॉर्मैट है। इसके तहत किसी खास शख्स का प्रोफाइल लेने के बाद उसके 10 पोस्ट शेयर, 100 पोस्ट लाइक और 20 पोस्ट का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है। साथ ही उसके नेटवर्क और ग्रुप का विश्लेषण किया जाता है। एजेंसी के अनुसार राजनीति से जुड़े पेज इन्हीं प्रोफाइल को देखकर बनाए जाते हैं और उन पर पोस्ट भी उसी अनुरूप में दिए जाते हैं।