कहर के बीच क्या कोरोना से लड़ने वाले इस ‘हथियार’ के एक्सपोर्ट को तैयार है भारत?
नई दिल्ली
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) ड्रग का नाम इन दिनों बहुत सुर्खियों में है. मलेरिया के इलाज के लिए काम आने वाली ये ड्रग क्या Covid-19 के इलाज में भी कारगर है? इसका कोई ठोस सबूत तो सामने नहीं आया है, लेकिन अमेरिका ने इस ड्रग को भारत से आयात करने में गहरी दिलचस्पी जताई है. बता दें कि भारत ने कोरोना वायरस संकट को देखते हुए इस ड्रग के निर्यात पर कुछ समय पहले रोक लगा दी थी. लेकिन अब भारत ने इस ड्रग को लाइसेंस्ड कैटेगरी में डाल दिया है. इसका मतलब है कि भारत में अपनी जरूरत पूरी होने के बाद ड्रग का स्टॉक सरप्लस है तो उसे निर्यात किया जा सकेगा यानी अमेरिका भी भेजा जा सकेगा.
आइए जानते हैं कि इस ड्रग की भारत में जरूरत और उपलब्धता कितनी है. अभी तक भारत में HCQ का उत्पादन हर साल 20 करोड़ यूनिट्स तक होता आया था. लेकिन भारत सरकार के सूत्रों ने आजतक को बताया कि अब एक हफ्ते में ही 20 करोड़ यूनिट्स HCQ के उत्पादन की क्षमता जुटा ली गई है. सूत्रों ने ड्रग के निर्यात की संभावना पर ये बात कही. सरकार के अनुमान के मुताबिक बाजार में करीब 1-2 करोड़ यूनिट्स का बफर स्टॉक मौजूद है.
सारा आंकलन इस बात को लेकर किया गया कि अगले 8 हफ्तों में ड्रग की कितनी जरूरत होगी. देश के करीब 400 रजिस्टर्ड ड्रग निर्माता इसका उत्पादन शुरू कर दें तो अपेक्षित क्षमता तक पहुंचा जा सकता है. HCQ अब पेटेंट ड्रग नहीं रही है. सरकारी सूत्रों ने बताया कि ड्रग को बनाने के लिए जरूरी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट (API) के अगले 4 महीने तक चीन से आयात की जरूरत नहीं है. भारतीय ड्रग निर्माताओं के एसोसिएशन का कहना है कि अब तक देश में HCQ का सालाना 20 करोड़ यूनिट्स होता रहा है. भारत में सिर्फ 3 करोड़ यूनिट्स की ही हर साल खपत होती है. यहां जितना ड्रग का निर्माण होता है, उसका करीब 75-80% हर साल निर्यात होता है. देश में IPCA कंपनी HCQ की सबसे बड़ी निर्माता है. अहमदाबाद स्थित कैडिला भी इस क्षेत्र में अहम निर्माता है. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एजिथ्रो-माइसिन का कॉम्बीनेशन कॉमन एंटीबायोटिक के तौर पर होता है. वडोदरा स्थित कंपनी एलेम्बिक घरेलू मार्केट लीडर है. इसका ब्रांड एजिथ्राल, मार्केट में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखता है.
अनुमान के मुताबिक IPCA 600 टन क्लोरोक्वीन फास्फेट बनाती है जो एंटी मलेरिया ड्रग है. ग्लोबल मार्केट में इसकी हिस्सेदारी 80 फीसदी है. हालांकि, संबंधित मलेरिया वैरिएंट से जुड़े केस कम हो जाने की वजह से इसकी मांग घट गई है.