एक महिला प्रधान ने बदल दी गांव में शिक्षा की तस्वीर

 लखनऊ
बाराबंकी के चंदवारा गांव की प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल ने अपने गांव के सरकारी स्कूल का माहौल कॉन्वेंट में तब्दील कर दिया है। पढ़ाई के साथ ही प्रकाशिनी ने यहां कॉन्वेंट की तर्ज पर समर कैंप आयोजित किया। इसमें बंगलुरु तक से एक्सपर्ट बुलाए। वहीं गांव की छात्राओं को दूर भेजने के लिए एक साइकल बैंक बनाया। इसमें छात्राओं को नि:शुल्क साइकल मुहैया करवाई गई है। इससे गांव की शिक्षा में बड़ा बदलाव आ चुका है। 
 
प्राथमिक विद्यालय चंदवारा में 21 से 25 मई तक समर कैंप आयोजित किया गया। शनिवार को इसका समापन हुआ है। गुरुवार को बंगलुरू से एक एक्सपर्ट पेंटिंग सिखाने के लिए गांव में आईं। वहीं सिंगिंग, डांस, योग, क्राफ्ट मेकिंग, ताइक्वांडो समेत कई तरह की एक्टिविटी बच्चों को सिखाई गईं। सभी बच्चों को कैंप के लिए नि:शुल्क टीशर्ट और लोअर भी दिया गया। जबकि इस पूरे आयोजन का खर्च प्रकाशिनी ने खुद वहन किया। प्रकाशिनी का जज्बा देखकर यूनेस्को के एक्सपर्ट तक ने इस समर कैंप में अपनी सहभागिता की। 

अपने बच्चों की तरह ही गांव के बच्चों को मिले शिक्षा
प्रकाशिनी ने बताया कि मेरे बच्चे जयपुरिया स्कूल में पढ़ने जाते हैं। वहां समर कैंप और इस तरह की एक्टिविटी होती है। मेरे गांव में ये एक ही प्राथमिक विद्यालय है। मुझे लगा कि मेरे बच्चों को ऐसी शिक्षा मिल रही है तो मेरे गांव के बच्चों को भी इसका अधिकार है। इसलिए मैंने सरकारी स्कूल में ही समर कैंप आयोजित किया। इसमें वैसे ही एक्सपर्ट बुलाए जैसे किसी बड़े स्कूलों में आते हैं। कपड़े भी एक से सभी को दिए ताकि किसी में हीन भावना न आए। 

छात्राएं अब दूर पढ़ने जा सकती है 
इसी साल प्रकाशिनी से गांव में साइकल बैंक शुरू किया। इसमें बीस छात्राओं को पढ़ने जाने के लिए साइकल दी गई। प्रकाशिनी ने बताया यह साइकल विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से लाई गई। मुझे जानकारी में आया कि गांव की लगभग बीस छात्राएं दूरी ज्यादा होने के कारण पूर्व माध्यमिक के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं। इसलिए मैंने यह साइकल बैंक बनाया। इससे वह अब आसपास के क्षेत्रों में स्थित कॉलेजों में पढ़ने जा रहीं है। जब यह पढ़ चुकेंगी तो इनसे यह साइकल जमा करवा ली जाएगी जो दूसरी छात्राओं के काम आएगी। इस तरह यह साइकल बैंक चलता रहेगा। 

यूनिसेफ के सोशल पॉलिसी स्पेशलिस्ट पीयूष एंटोनी ने कहा कि यह विकास की एक नई परिभाषा है। इससे गांव के बच्चों को भी शहरी बच्चों की तरह सीखने के समान अवसर मिलेंगे। हर ग्राम पंचायत में इसी तरह के प्रयास हो तो सरकारी और निजी स्कूलों का भेद ही खत्म हो जाएगा। 

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