आदिवासी मध्य प्रदेश में रच रहे नई राजनीतिक कहानी

 

भोपाल 
मध्यप्रदेश की राजधानी से 360 किलोमीटर दूर राजनीतिक सशक्तिकरण का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है. कुक्षी तहसील में एक कमरे में करीब 40 लोग जुटे थे. ये राज्य की छह आदिवासी  बहुल संसदीय सीटों में से पांच में से आए थे. यहां जुटने का मकसद लोकसभा की सीटों के लिए तीन उम्मीदवारों का चयन करना था. सबने हर सीट के उम्मीदवार के बारे में विचार-विमर्श किया और अंत में तीन जो सबसे अच्छे थे उन्हें चुना. कोई पार्टी हाईकमान नहीं था, कोई बड़ा नेता नहीं था. निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया. इसके साथ, संसदीय चुनाव में अपनी पहली लड़ाई के लिए JAYS (जय आदिवासी युवा संगठन) का शंखनाद हुआ. यह राज्य में औरों की तरह समान रूप से महत्वपूर्ण भागीदार और अब हाशिए पर रहने से इनकार इनका अब दृढ़ संकल्प है. मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों में धार से महेंद्र कन्नौज , झाबुआ से कमलेश डोडियार और बैतूल लोकसभा सीट से पुष्पा पेंड्राम (सभी आरक्षित सीट) हैं, जबकि खरगोन की चौथी सीट के लिए 6 मई तक फैसला टाल दिया गया है.

राज्य में आदिवासी करीब 22 फीसद वोट शेयर के साथ एक बड़ी ताकत हैं. इनसे दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए खतरा पैदा हो गया है. 47 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लिए आरक्षित थीं और भील, भीलदा, गोंड, सहरिया, बैगा, कोरकू, भारिया, हल्बा, कौल और मरिया राज्य में एक बड़ी आबादी है. एक मोटे अनुमान के अनुसार, उनकी आबादी गैर-आरक्षित सीटों वाले इलाके में भी 40 से 50 हजार तक है.

आदिवासी युवकों की ओर से वर्ष 2012 में गठित जायस (JAYS) अब 12 लाख से अधिक सदस्यों के साथ राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, एमपी और गुजरात सहित पांच राज्यों में फैल गया है. इसका गठन तब हुआ जब जनजातियों के शिक्षित बेरोजगार युवकों को यह लगा कि अधिकांश राजनीतिक दल इनकी प्रमुख मांगों पर सिर्फ बातें कर रहे है. राजनीतिक दल दशकों से इनका समर्थन प्राप्त करके राजनीतिक और चुनावी लाभ ले रहे हैं.

इस संगठन ने लोगों का ध्यान वर्ष 2013 में तब खींचा जब इसने अलीराजपुर जिले में देश की पहली फेसबुक पंचायत का आयोजन किया, उसके बाद 2014 में बड़वानी में भी इसी तरह का आयोजन किया. संगठन ने छात्र राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जब 2017 में कुल 162 इस संगठन के समर्थित उम्मीदवारों ने धार, झाबुआ, अलीराजपुर और बड़वानी जिलों में छात्र संघ चुनाव जीता. इसके नेताओं ने आरएसएस समर्थित एबीवीपी और कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई के उम्मीदवारों को हराया.

JAYS के संस्थापक सदस्यों में से एक और धार जिले की मनावर सीट से विधायक डॉ.हीरालाल अलावा (एमडी-मेडिसिन) के अनुसार, जब यह महसूस हुआ कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां पांचवी अनुसूची (वन अधिनियम के तहत वनवासी), बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए नौकरी, स्वास्थ्य सुविधा, पेयजल, पुलिस अत्याचार रोकने और कई दशकों से हमारे क्षेत्रों के विकास के लिए धन मुहैया कराने के बारे में केवल बातें कर रही हैं तो लगा कि मुख्यधारा के चुनावों में अन्य राजनीतिक दलों का समर्थन करने के बजाय, हमें अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की जरूरत है. डॉ. हीरालाल ने 2017 के चुनाव लड़ने के लिए नई दिल्ली एम्स की अपनी अच्छी-खासी सैलरी वाली नौकरी छोड़ दी. कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने यह सीट जीती.

विधायक डॉ. हीरालाल के अनुसार, JAYS ने कांग्रेस से अपने 80 उम्मीदवारों उतारने का आग्रह किया था, विशेषकर मालवा-निमाड़ क्षेत्र में. कांग्रेस JAYS के सात सदस्यों को अपने उम्मीदवार घोषित करने के लिए सहमत हो गई थी बाद में केवल मुझे मनावर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा.

लोकसभा चुनावों में भी, JAYS ने आरक्षित सीटों से 6 टिकटों की मांग की थी. मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ एक बैठक भी हुई लेकिन इसका कोई परिणान नहीं निकला. अब कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ चार सीटों पर JAYS उम्मीदवारों को खड़ा किया जाएगा. ये एसटी के लिए आरक्षित सीटें हैं – धार, झाबुआ, खरगोन, बैतूल, मंडला और शहडोल.

JAYS के प्रदेश अध्यक्ष एंटिम मुझालदा ने कहा कि चार लोकसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक में लगभग 4,000 युवा जाने के लिए तैयार हैं. प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में, 100 JAYS कार्यकर्ताओं की एक टीम को उम्मीदवारों के लिए प्रचार के लिए भेजा जा रहा है.

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