अनोखा है ये भगवान शिव का मंदिर, 12 साल में एक बार होता है ऐसा…

सावन ( Sawan 2019) का महीना (Sawan Ka Mahina) भगवान शिव (God Shiva) का प्रिय है। इस पूरे महीने में लोग भगवान शिव की पूजा करते है। ज्योतिष के अनुसार, कहा जाता है कि सावन के पूरे महीने में अगर सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा की जाएं तो उसके परिवार और कारोबार में सुख-समृद्धि आती है। यूं तो हर जगह मंदिर देखने को मिल जाएंगे।

भारत में कई ऐसे मंदिर है जिनका रहस्य आज भी बना हुआ है। उन्हीं में से एक ऐसा मंदिर ‘बिजली मंदिर’ (Bijli Mahadev Temple) है, जिसके रहस्य को लोग चमत्कार मानते है।

भगवान शिव का ‘बिजली मंदिर’ हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित है। कुल्लू शहर में व्यास और पार्वती नदी के संगम के पास बसा है। यह जगह समुद्र सतह से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

मान्यता है की यह घाटी एक विशालकाय सांप का एक रूप है जिसका वध भगवान शिव ने किया था। यहां पर जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की गई है वहां हर साल बिजली गिरती है, बिजली गिरने से इस मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर में एक रहस्यमयी शिव मंदिर बना हुआ है, जिसकी गुत्थी आज तक कोई भी नहीं सुलझा सका है और ऊंची पहाडिय़ों पर स्थित इस मंदिर पर मां पार्वती एवं व्यास पार्वती और व्यास नदी का संगम भी है।

इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर पर हर 12 साल में आकाशीय बिजली गिरती है, हालांकि इसके बाद भी मंदिर को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है। इस खंडित शिवलिंग को मंदिर के पुजारी एकत्रित करके मक्खन से वापस जोड़ देते है। कुछ माह बाद यह शिवलिंग ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है।

कहते हैं यहां पहले कुलांत नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआस लाहौल स्पीति से मथाण गांव आ गया। दैत्यअजगर कुण्डली मार कर व्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीव जंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे।

भगवान शिव कुलांत के इस विचार से से चिंतित हो गए। तब भगवान शिव ने उस राक्षस अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलांत पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलान्त के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलांत मारा गया। कुलांत के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया। उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा की पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है।

किंवदंती है कि कुलांत से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम पड़ा। कुलांत दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे 12 वर्ष में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर 12 वर्ष में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोडक़र स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।

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