UP में चौथे चरण की 5 सुरक्षित सीटें, बदले चेहरे के साथ उतरी है BJP

 
नई दिल्ली   
     
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में उत्तर प्रदेश की 13 संसदीय सीटों पर 29 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इनमें 5 लोकसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं और इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. हालांकि इस बार के सपा-बसपा गठबंधन के चलते बदले राजनीतिक समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने पांच में चार सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारा है. बावजूद इसके बीजेपी के लिए इन सीटों पर जीत दोहराना आसान नहीं दिख रहा है.

हरदोई:

हरदोई लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इस सीट पर बीजेपी के जय प्रकाश रावत, सपा की उषा वर्मा और कांग्रेस के वीरेंद्र वर्मा के बीच कांटे का मुकाबला है. हालांकि 2014 में बीजेपी के अंशुल  वर्मा ने बसपा के शिव प्रसाद वर्मा को करीब 81 हजार मतों से हराया था. लेकिन बीजेपी ने अंशुल वर्मा का टिकट काटकर उनकी जगह नरेश अग्रवाल के करीबी और पिछले लोकसभा चुनाव में मिश्रिख सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव हारने वाले पूर्व सांसद जय प्रकाश रावत पर दांव लगाया है.

इससे नाराज होकर अंशुल वर्मा ने बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. दरअसल हरदोई की सियासत में नरेश अग्रवाल की तूती बोलती है. यही वजह है बीजेपी ने उनके चहेते पर भरोसा जताया है, लेकिन सपा-बसपा के गठबंधन के चलते उषा वर्मा और जय प्रकाश रावत के बीच इस सीट पर कांटे का मुकाबला माना जा रहा है.

मिश्रिख:

मिश्रिख लोकसभा सीट भी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इस सीट पर बीजेपी ने अशोक रावत, बसपा ने नीलू सत्यार्थी और कांग्रेस ने मंजर राही को चुनावी मैदान में उतारा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अंजू बाला ने बसपा के अशोक रावत को करीब 87 हजार मतों से मात देकर जीत हासिल की थी.

हरदोई की तरह मिश्रिख सीट पर भी नरेश अग्रवाल की चली. यहां भी बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर बसपा से आए अशोक रावत पर भरोसा जताया है. ऐसे में अब नरेश अग्रवाल पर हरदोई और मिश्रिख दोनों सुरक्षित सीटों पर अपने करीबियों को जिताने की जिम्मेदारी है, लेकिन गठबंधन के चलते बदले सियासी समीकरण में बीजेपी के लिए ये सीटें बचाए रखना बड़ी चुनौती है.

शाहजहांपुर:

शाहजहांपुर लोकसभा सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर बीजेपी ने अरुण कुमार सागर, बसपा ने अमर चंद्र जौहर और कांग्रेस ने ब्रह्मस्वरूप सागर को अपना प्रत्याशी बनाया है. 2014 में बीजेपी के कृष्णराज ने बसपा के उमेद सिंह कश्यप को 2 लाख 35 हजार मतों से मात देकर जीत दर्ज की थी.

बीजेपी ने हरदोई मिश्रिख की तरह शाहजहांपुर सीट पर अपने मौजूदा सांसद का टिकट अरुण सागर पर दांव लगाया है, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से ब्रह्मस्वरूप को मैदान में उतारकर बीजेपी के समीकरण को बिगाड़ दिया है. हालांकि 2014 में सपा-बसपा को मिलकर जितना वोट मिला था. उससे ज्यादा अकेले बीजेपी को मिला था. ऐसे में गठबंधन और बीजेपी दोनों के लिए यह सीट जीतना बड़ी चुनौती है.

इटावा:

इटावा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के आरक्षित है. यहां से बीजेपी ने राम शंकर कठेरिया, सपा से कमलेश कठेरिया और कांग्रेस ने अशोक कुमार दोहरे को प्रत्याशी बनाया है. 2014 में बीजेपी के अशोक दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया को करीब पौने दो लाख मतों से मात देकर जीत हासिल की थी. लेकिन बीजेपी ने दोहरे का टिकट काटकर आगरा से सांसद रहे राम शंकर कठेरिया पर भरोसा जाताया है. इससे अशोक दोहरे नाराज होकर कांग्रेस का दामन थामकर मैदान में उतर गए हैं.

दिलचस्प बात ये है कि इटावा से बीजेपी ने जब भी जीत दर्ज किया तो केंद्र में उसकी सरकार बनी. इटावा में ही पिछले चार वर्ष से बसपा के संभावित उम्मीदवार के रूप में शंभू दयाल दोहरे अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटे थे. लेकिन सीट सपा के खाते में जाने से वो शिवपाल यादव की पार्टी से चुनावी मैदान में उतर गए हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक इटावा के वकील राजेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं,  'इस बार दलितों की कठेरिया और दोहरे जाति का वोट बंट रहा है लेकिन जाटव बिरादरी सपा-बसपा गठबंधन पर एकजुट है. इसके अलावा सवा लाख से अधिक मुस्लिम और 2 लाख यादव मतदाताओं के भी एकतरफा समर्थन से सपा उम्मीदवार बीजेपी को कठिन चुनौती दे रहे हैं.'

जालौन:

जालौन लोकसभा सीट भी अनुचूति जाति के लिए सुरक्षित है. यहां से बीजेपी ने भानु प्रताप वर्मा, बसपा ने अजय सिंह पंकज और कांग्रेस ने ब्रजलाल खाबड़ी को चुनावी रणभूमि उतारा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के भानु प्रताप वर्मा ने बसपा के ब्रजलाल खाबड़ी को पौने तीन लाख मतों से मात दी थी. इस सीट पर बीजेपी को सपा-बसपा के कुल मत से ज्यादा मिले थे. चौथे चरण की इकलौती सुरक्षित सीट थी, जिस पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सासंद का टिकट बदलना नहीं है. हालांकि भानु प्रताप वर्मा के लिए बदले राजनीतिक समीकरण के चलते इस बार जीत आसान नहीं है.

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