MP विधान सभा में अब नहीं दिखाई देंगे मनोनीत एंग्लो इंडियन सदस्य!

जबलपुर
मध्य प्रदेश विधानसभा (Madhya pradesh assembly) में भी अब मनोनीत एंग्लो इंडियन सदस्य नहीं दिखाई देंगे. मोदी सरकार के फैसले के बाद एंग्लो इंडियन (Anglo Indian) पद पर मनोनयन का प्रावधान खत्म कर दिया गया है. इसका असर मध्य प्रदेश पर भी होगा.यहां अब किसी एंग्लो-इंडियन सदस्य का मनोनयन नहीं किया जाएगा.

मध्यप्रदेश के लिहाज से एंग्लो-इंडियन सदस्य का कोटा इस वक्त अहम था.इससे विधानसभा में कांग्रेस का संख्याबल बढ़ जाता. लेकिन 126वां संशोधन बिल 2019 पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही अब एंग्लो इंडियन सदस्य के मनोनयन की अवधि आगे नहीं बढ़ायी गयी है.

बीती 10 दिसंबर को लोकसभा में 126वां संशोधन बिल 2019 पारित किया गया था. इसमें एससी-एसटी कोटे की समय अवधि तो 25 जनवरी 2030 तक बढ़ा दी गई है लेकिन एंग्लो इंडियन कोटे को अब और नहीं बढ़ाने का फैसला किया गया है.ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 334 द्वारा दिया गया एंग्लो इंडियन कोटा 25 जनवरी 2020 से खत्म हो जाएगा.

पुरानी व्यवस्था के मुताबिक लोकसभा में 2, राज्य सभा और विधानसभा में 1 सदस्य के मनोनयन का प्रावधान था. इससे पहले हर बार एससी – एसटी कोटे के साथ एंग्लो इंडियन कोटे की भी समय अवधि 10 साल बढ़ा दी जाती थी. मध्य प्रदेश विधानसभा में भी एंग्लो-इंडियन सदस्य अभी तक मनोनीत होते रहे.

मध्यप्रदेश के लिहाज से इस समय एंग्लो इंडियन कोटा अहम था क्योंकि इससे विधानसभा में कांग्रेस का संख्या बल बढ़ जाता.विधानसभा में इस समय कांग्रेस के 115 सदस्य हैं जो बहुमत से एक सीट कम है.कमलनाथ सरकार सदस्य को मनोनीत कर पाती उससे पहले ही मामला कोर्ट में पहुंच गया.  एंग्लो इंडियन कोटे को अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक बताकर जबलपुर के एक स्वयंसेवी संगठन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.संगठन ने केन्द्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया है.

एंग्लो इंडियन यानि अपने देश के ऐसे नागरिक जो भारत में रहते हों, लेकिन उनके पूर्वज अंग्रेज थे.भारत में एंग्लो इंडियन समाज से आने वाले सदस्यों को सीधे विधानसभा में विधायक और लोकसभा में सांसद के पद पर मनोनीत किया जाता है.एंग्लो इंडियन कोटे से विधायक और सांसद बनने वाले सदस्यों को विधायकों और सांसदों की तरह ही विधानसभा और लोकसभा मे वोटिंग का भी अधिकार रहता है. इन्हें मनोनीत करने वाले सियासी दल सदन में इनका इस्तेमाल अपना संख्या बल बढ़ाने के लिए भी करते हैं.

एंग्लो इंडियन कोटे से विधानसभा में जबलपुर का ही कोई ना कोई सदस्य मनोनीत होता रहा है.कांग्रेस शासन में जून चौधरी कई वर्षों तक एंग्लो इंडियन कोटे से विधायक रहीं. साल 2004 के बाद भाजपा शासन में लौरेन बी लोबो 14 साल तक इस कोटे से विधायक रहीं.

भारत में पिछली दो जनगणना के रिकॉर्ड में एंग्लो इंडियन की संख्या कम हुई है. 2001 की जनगणना में 731 एंग्लो इंडियन परिवार थे, जो घटकर 2011 में 256 रह गए हैं. सवाल उठ रहा है कि 425 एंग्लो इंडियन कहां हैं. क्या उनकी मृत्यु हो चुकी है या फिर वे अपने देश इंग्लैंड चले गए हैं या फिर धर्म परिवर्तन कर लिया.

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