CAA के समर्थन में उतरीं 1100 हस्तियां, कहा- जानबूझकर फैलाया जा रहा डर का माहौल

 
लखनऊ  

नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) के खिलाफ राजनीतिक दलों के विरोध और आम लोगों के प्रदर्शन के बीच बुद्धिजीवियों का एक धड़ा इसके समर्थन में उतर आया है. 1100 शिक्षाविदों, रिसर्च स्कॉलर्स, वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने सीएए के समर्थन में एक बयान जारी किया है.

इन लोगों में एक बड़ी तादाद भारतीय व विदेशी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों, असोसिएट प्रोफेसरों और असिस्टेंट प्रोफेसरों की है. इसके अलावा, समर्थन करने वालों में एम्स, आईआईएमएस और आईआईटी के वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

कौन-कौन लोग हैं शामिल
समर्थन में बयान जारी करने वालों में जेएनयू के आनंद रंगनाथन और प्रोफेसर श्री प्रकाश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता, इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज के सीनियर फेलो अभिजीत अय्यर मित्रा, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जे साई दीपक, पटना यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ लॉ के गुरु प्रकाश, आईसीएसएसआर की सीनियर फेलो मीनाक्षी जैन, शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती के डॉक्टर देबाशीष भट्टाचार्य, एमिटी यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर जीतेन जैन, मणिपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर एपी पांडेय, डीयू के भास्कराचार्य कॉलेज की डॉक्टर गीता भट्ट समेत कई नाम शामिल हैं.

क्या लिखा है बयान में?
जारी बयान में इस कानून को पास करने को लेकर सरकार और भारतीय संसद को बधाई दी गई है. साथ ही कहा गया है कि इस कानून के जरिए सरकार और संसद उन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए खड़ी हुई है, जिन्हें दुनिया भर में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है. बयान में कहा गया है कि 1950 में लियाकत और नेहरू के बीच हुआ समझौता नाकाम होने के बाद सभी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों की ओर से पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की मांग की जाती रही है.

बयान के मुताबिक, ये अल्पसंख्यक मुख्य तौर पर दलित समुदाय से ताल्लुक रखते थे . बयान में उत्तरपूर्वी राज्यों की चिंताओं के समुचित समाधान किए जाने की बात कहते हुए संतोष जताया गया है.

'धार्मिक भेदभाव नहीं करता सीएए'
बुद्धिजीवियों ने अपने बयान में कहा है, 'हमें विश्वास है कि सीएए पूरी तरह भारत के सेक्युलर संविधान के अनुरूप है और भारतीय नागरिकता चाहने वाले किसी भी देश के शख्स को नहीं रोकता है. न ही यह नागरिकता के मापदंडों को बदलता है.'

बयान के मुताबिक, यह कानून तीन देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के चलते पलायन करने वाले अल्पसंख्यकों की समस्याएं खत्म करता है. साथ ही अहमदिया, हजारा या किसी अन्य संप्रदाय या नस्ल के लोगों को नियमित प्रक्रियाओं के जरिए भारतीय नागरिकता पाने से वंचित नहीं करता. बयान में आरोप लगाया गया है कि देश में जानबूझकर डर का माहौल फैलाया जा रहा है, जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में और खास तौर पर बंगाल में हिंसा हुई. बयान में समाज के हर तबके से अपील की गई है कि वे शांति बरतें और सांप्रदायिकता और अराजकतावाद की चपेट में न आएं.

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