2019 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सामने ये बड़ी चुुनौतियां

 
नई दिल्ली 

2014 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी जीत हासिल हुई। 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर बीजेपी की जीत हुई वहीं बीएसपी कोई सीट हाथ नहीं लगी थी। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सामने कई चुनौतियां हैं। कहते हैं कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। इस नजरिए से बीजेपी के लिए 2019 में उत्तर प्रदेश बहुत ही महत्वपूर्ण है। शुक्रवार को एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दिल्ली में बीएसपी सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की। उम्मीद है कि इसी माह दोनों पार्टियों के गठबंधन की आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक एसपी और बीएसपी ने प्रदेश में 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दोनों पार्टियों के साथ आने से निश्चित रूप से बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी होगी। वहीं कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद यूपी में अकेली चुनाव लड़ने के लिए कमर कस रही है।  
 गोवंश की बढ़ती संख्या 
उत्तर प्रदेश में ग्रामीण इलाकों में गोवंश के विचरण से किसानों को बड़ा नुकसान हो रहा है। इसके लिए किसान योगी और मोदी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। हालांकि योगी सरकार ने मामले का संज्ञान लेते हुए गोशालाएं बनाने का ऐलान किया है। साथ ही उन्होंने 10 जनवरी तक स्वच्छंद घूमने वाले गोवंश को गोशालाओं में लाने का आदेश भी दिया है। अगर समय पर इस समस्या से किसानों को निजाद नहीं मिलती तो यह बीजेपी सरकार के लिए चुनौती बन सकती है। 
कई सांसदों के काम से जनता असंतुष्ट 
2014 में मोदी लहर में बीजेपी उम्मीदवारों को जीत तो मिल गई लेकिन पांच सालों से कई सांसदों ने जनता को मुंह नहीं दिखलाया। ऐसे में जनता अपने नेता से असंतुष्ट है। फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र के लोगों का कहना है कि उनके सांसद उसी क्षेत्र तक सीमित हैं जहां वह विधानसभा का चुनाव लड़ा करते थे। एक सांसद के रूप में वह अपने बाकी क्षेत्र के लोगों का ध्यान नहीं दे रहे हैं। ऐसे में हो सकता है कि पार्टी 2019 के चुनाव में अपने कुछ उम्मीदवारों का टिकट काट कर नए चेहरों को मैदान में उतारे। 
कर्जमाफी से असंतुष्ट किसान 
विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली थी। घोषणापत्र में शामिल कर्जमाफी का वादा इसके लिए एक बड़ी वजह थी। लेकिन सरकार बनने के बाद कर्जमाफी की योजना से बहुत सारे किसानों को निराशा हुई। लोगों को उम्मीद थी कि केंद्र की यूपीए सरकार की तरह बड़े कर्ज भी माफ किए जाएंगे लेकिन बीजेपी सरकार की योजना के मुताबिक कर्जमाफी में केवल 1 लाख तक की रकम को ही शामिल किया गया। इसके लिए किसान के पास एक हेक्टेयर की ही भूमि होनी चाहिए। ऐसे में उम्मीद जगाए बैठे कई बड़े किसानों को निराशा हाथ लगी। वहीं बहुत सारे किसानों की शिकायत है कि एक लाख तक का भी पूरा कर्ज माफ नहीं किया गया बल्कि ब्याज के तौर पर रकम भी वसूली गई। 
अपनों के निशाने पर बीजेपी 
बीजेपी पर दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सावित्रीबाई फुले ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। वहीं ओम प्रकाश राजभर लगातार योगी सरकार पर निशाना साधते रहते हैं। एनडीए में शामिल अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी पति आशीष को प्रदेश नेतृत्व में उचित सम्मान न मिलने का आरोप लगाया था। ऐसे में अपने नेताओं को जोड़कर रखना भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। 
सवर्ण वोटों को संभालना भी चुनौती 
बीजेपी का सबसे बड़ा वोटबैंक सवर्ण होते हैं। इस बार एससी एसटी ऐक्ट की वजह से सवर्णों में नाराजगी है। वहीं बीएसपी और एसपी के साथ आने से दलितों और मुस्लिमों के वोट एक खेमे में जा सकते हैं। प्रदेश में कांग्रेस अकेली मैदान में उतर सकती है। हालांकि इससे बीजेपी को बड़ा नुकसान नहीं होगा बल्कि एसपी-बीएसपी (संभावित) गठबंधन के वोट ही कम होंगे। 
राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा 
उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा है। 2019 में सत्ता की चाभी भी इससे जुड़ी हुई है। लोगों का कहना है कि जब 2014 में बीजेपी को बहुमत मिला था तो लोगों को उम्मीद थी कि सरकार राम मंदिर बनाने का रास्ता निकालेगी लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने इंटरव्यू में कहा कि सुप्रीम कोर्ट में फैसले के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा। हालांकि हिंदू वोट इस मुद्दे से प्रभावित हो सकता है। 

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