100 में 100 का ट्रेंड: विशेषज्ञों ने एजुकेशन और एग्जाम सिस्टम पर उठाए सवाल

 नई दिल्ली 
CISCE (काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशंस) के 10वीं और 12वीं के रिजल्ट मंगलवार को घोषित हुए। 12वीं में 2 छात्रों ने सभी विषयों में 100 प्रतिशत मार्क्स हासिल किए लेकिन विशेषज्ञों ने बोर्ड एग्जाम्स में हाई स्कोर के ट्रेंड को लेकर चिंता जताई है। विशेषज्ञों का कहना है एजुकेशन सिस्टम में विचारों की मौलिकता और रचनात्मकता के बजाय अंकों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इससे 4 दिन पहले ही, सीबीएसई के 12वीं के 2 स्टूडेंट महज एक अंक से पर्फेक्ट 100 से चूक गए थे। इसी तरह, सीबीएसई के 10वीं के रिजल्ट में 13 स्टूडेंट ने संयुक्त रूप से टॉप किया था, जो सिर्फ 1 अंक से पर्फेक्ट 100 से चूके थे। रैंक 2 पर 498 अंकों के साथ 24 बच्चे थे और तीसरे स्थान 497 मार्क्स के साथ 58 बच्चे थे। इसके अलावा 57,256 स्टूडेंट्स ने 95 प्रतिशत या इससे ज्यादा अंक हासिल किए थे।  
 
NCERT (नैशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनशनल रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग) के पूर्व डायरेक्टर कृष्णा कुमार ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, '100 प्रतिशत स्कोर के ट्रेंड का एजुकेशन बोर्डों की मार्किंग में उदारता से कुछ लेना-देना नहीं है। समस्या इसमें है कि कि प्रश्न कैसे सेट किए जाते हैं और उनके लिए मॉडल आन्सर कैसे तैयार किए जाते हैं। ये मॉडल आन्सर ऐसे हैं कि स्टूडेंट फुल मार्क पाने के लिए उन उत्तरों को पूरी तरह दोबारा लिख सकते हैं। जो स्टूडेंट थोड़े मौलिक और रचनात्मक हैं, उन्हें इस प्रक्रिया में नुकसान पहुंच रहा है। एक पुरानी कहावत भी है, यह तोता रटंतों की जीत है।' उन्होंने कहा कि इस समस्या का हल बेहतर प्रश्न पत्र और उनके लिए मॉडल आन्सर तैयार करना है। 
 
कुमार ने कहा कि सीबीएसई ने नैशनल करिक्युलम फ्रेमवर्क 2005 के एग्जामिनेशन के लिए बने नैशनल फोकस ग्रुप की सिफारिशों के आधार पर 2008-09 में सुधारों को शुरू किया था लेकिन उसे जारी नहीं रखा गया। उन्होंने बताया, 'नैशनल फोकस ग्रुप ने कुछ बड़ी सिफारिशें की थीं और सीबीएसई ने उन सुधारों पर 2008-09 में काम भी किया लेकिन उसे जारी नहीं रखा गया। सुधारों की शुरुआत हुई लेकिन वे बरकरार नहीं रह सके। शैक्षिक सुधारों को बरकरार रखने की जरूरत होती है, इसलिए हम जहां से चले थे फिर वहीं लौट आए हैं।' 

इस साल ISSE के टॉपरों- देवांग अग्रवाल और विभा स्वामीनाथन दोनों ने 12वीं में 400 में से 400 अंक हासिल किए। 10वीं में जूही रुपेश कजरिया और मनहर बंसल 500 में से 498 अंक लाकर संयुक्त रूप से टॉपर रहे। 
 

सीबीएसई के पूर्व अध्यक्ष अशोक गांगुली के मुताबिक छप्परफाड़ अंक हमारे एजुकेशन सिस्टम की विश्वसनीयता के लिए खतरा है। गांगुली कहते हैं, 'ये छप्परफाड़ अंक बहुत डिस्टर्ब करने वाले हैं। हमें अपने स्टूडेंट्स के मूल्यांकन पर सोचने की जरूरत है ताकि हमारे सिस्टम में विश्वसनीयता और वैधता बनी रहे। इससे पहले, यह ट्रेंड कुछ स्टेट बोर्ड्स में देखने को मिला था। अब सभी छप्परफाड़ अंक देने की प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।' 

गांगुली ने नैशनल असेसमेंट पॉलिसी की वकालत की है, जो विश्वसनीय और प्रतिष्ठित होती। उन्होंने कहा, 'मैं हाई मार्क्स पाने वाले स्टूडेंट्स के प्रदर्शन और उनकी काबिलियत पर शक नहीं कर रहा हूं।' सीबीएसई के सबसे लंबे वक्त तक चेयरपर्सन रहे गांगुली को एक और दुख है। वह कहते हैं, 'हम टॉपरों की पहचान क्यों कर रहे हैं? यह स्कूल और बोर्डों में स्टूडेंट्स के बीच गैरजरूरी होड़ को बढ़ावा दे रहा है। इसे रोकने की जरूरत है। हमने 10 साल पहले इसे रोका था लेकिन अब यह फिर शुरू हो गया है।' 

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