होली से पहले होलाष्टक, जानें कब से शुरू हो रहा यह अशुभ समय

होली का त्योहार इस साल 10 मार्च को मनाया जाएगा। लेकिन होली के ठीक आठ दिन पहले ही हर साल की तरह इस बार भी होलाष्टक लगेगा। इस साल होलाष्टक का आरंभ 3 मार्च मंगलवार से होने जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक का समय होलाष्टक कहा गया है। इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए क्योंकि यह अशुभ समय होता है। खास तौर पर इस दौरान विवाह करना बहुत ही अशुभ माना गया है।

शिव पुराण में मिलती है यह कथा
होलाष्टक के अशुभ समय होने की वजह क्या है इसका उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। ऐसी कथा है कि तारकासुर का वध करने के लिए शिव और देवी पार्वती का विवाह होना आवश्यक था क्योंकि उस असुर का वध शिव पुत्र के हाथों हो सकता था। लेकिन देवी सती के आत्मदाह के बाद से भगवान शिव ने अपने आपको तपस्या में लीन कर लिया था। दुखी देवताओं ने भगवान शिव को तपस्या से विमुख करना चाहा और इसके लिए कामदेव और देवी रति को आगे कर दिया।

तब से होलाष्टक का समय अशुभ माना गया
कामदेव और रति ने शिवजी को तपस्या भंग कर दी क्रोधित होकर शिवजी ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया। जिस दिन यह घटना हुई थी वह फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि थी। इस घटना के आठ दिनों के बाद देवताओं और देवी रति के क्षमा मांगने पर भगवान शिव ने कामदेव के फिर से जीवत होने को वरदान दिया जिसके बाद से यह आठ दिन अशुभ माना गया और नवमें दिन कामदेव के फिर जीवित होने की खुशी में रंगोत्सव मनाया गया।

इसलिए भी होलाष्टक है अशुभ
एक अन्य कथा है कि होलिका ने जब हिरण्यकश्यपु के कहने पर प्रह्लाद को अग्नि में लेकर प्रवेश करने की बात स्वीकर कर ली तो होलाष्टक के आठ दिनों में इसके लिए चिता की तैयारी की गई जिससे यह समय अशुभ काल माना गया। नवमें दिन जब प्रह्लाद जीवित बच गया और होलिका जल गई तो लोगों ने आनंद मनाया। इस घटना के बाद से होली से पहले होलाष्टक मनाया जाता है।

ज्योतिष की दृष्टि में होलाष्टक अशुभ समय
धार्मिक ही नहीं ज्योतिषीय दृष्टि से भी होलाष्टक अशुभ समय माना गया है। ऐसी मान्यता है कि होलाष्टक से पूर्णिमा तक ग्रहों की स्थिति अच्छी नहीं होती है। अष्टमी से पूर्णिमा तक अलग-अलग दिनों में अलग-अलग ग्रह उग्र होते हैं जैसे अष्टमी तिथि को चंद्रमा उग्र रहते हैं। नवमी को सूर्य, दशमी तिथि को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी तिथि को गुरु, त्रयोदशी तिथि को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र यानी प्रतिकूल स्थिति में होते हैं जिससे आसुरी शक्तियों यानी नकारात्मक उर्जा का भाव अधिक होता है इससे शुभ कार्यों में अनुकूल परिणाम नहीं मिल पाता है।

होलाष्टक की तैयारी
होलाष्टक के आठवें दिन पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका के जलने पर आसुरी शक्तियों का नाश होता है। इसे जलाने की तैयारी होलाष्टक के पहले दिन से शुरू हो जाती है। होलाष्क के पहले दिन जहां होलिका दहन किया जाना होता है वहां लकड़ियों का खूंटा लगाया जाता है और अगले आठ दिनों तक वहां सूखी लकड़ियों को जमा किया जाता है। फिर होलिका दहन के दिन इसकी पूजा करने के बाद इसमें आग लगाकर होलिका दहन किया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *