हारे हुए दिग्गज नेताओं की भूमिका तय करना कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
भोपाल
विधानसभा में शानदार जीत के बाद लोकसभा में कांग्रेस को मिली करारी हार वाकई चौंकने वाली रही। इस चुनाव में मोदी मैजिक इस कदर हावी हुआ कि कांग्रेस का सुपड़ा ही साफ हो गया। कई दिग्गज नेताओं के ना सिर्फ किले ढह गए बल्कि वे खुद भी हार गए। केवल मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनका बेटा नकुलनाथ मोदी लहर के असर से बच निकले और जीत गए। इन सब के बीच हर किसी के मन में यही सवाल उठ रहा है कि आखिर अब बड़े नेताओं का क्या होगा। क्या पार्टी उन्हें एक हार के लिए दरकिनार कर देगी या फिर कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी देकर फिर से उनके भविष्य को नई दिशा देगी। वही आगामी नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव को देखते हुए पार्टी को इन नेताओं का फैसला जल्दी करना होगा। यह पार्टी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नही।
दरअसल, हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। कई दिग्गज नेता जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, विवेक तन्खा, रामनिवास रावत मोदी लहर में टिक नही पाए और भारी मतों से हार गए। अपने बड़े नेताओं की हार से पार्टी भी हैरान है, इनमें सबसे ज्यादा चर्चा सिंधिया और दिग्विजय की रही। हैरानी की बात तो ये रही कि सिंधिया को जिस केपी यादव ने हराया वह पहले सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। उन्होंने उनसे ही राजनीति के गुर सीखे थे और चुनावी मैदान में दल बदलते ही उन्हें करीब 1 लाख 25 हजार 549 वोटों से हरा दिया। हालांकि पार्टी आलाकमान में उनकी गहरी पैठ के चलते उनके सियासी भविष्य को लेकर तो किसी को संदेह नहीं है। हार के बाद भी उनके समर्थक भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे है और प्रदेशाध्यक्ष बनाने की मांग किए हुए है, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि पार्टी उन्हें राष्ट्रीय या प्रदेश स्तर पर कोई बड़ा पद दे सकता है, हालांकि पार्टी क्या फैसला करती है वह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
दिग्विजय सिंह जो अपने राजनैतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके है, जिनकी राजनीति में अच्छी पकड़ है , सालों से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते हुए आए है वे राजनीति में नई आई मालेगावं ब्लास्ट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा से करीब तीन लाख से ज्यादा वोटों से हार गए। हालांकि यह कहा जा सकता है कि उन्होंने गलत सीट को चुना, अगर वे राजगढ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते तो शायद जीत जाते। भोपाल सालों से बीजेपी का गढ़ रहा है और सरकार भी यही से चलती आई है, ऐसे में अधिकारियों-कर्मचारियों से लेकर जनता की नाराजगी दिग्विजय पर जमकर भारी पड़ी और वे हार गए।हालांकि अब भी वे राज्यसभा सांसद है, उनका कार्यकाल एक साल और है, ऐसे में उनके भविष्य को लेकर ज्यादा चिंता नही क्योंकि पार्टी के पास उनके लिए अभी एक साल तक का समय है।
विधानसभा के बाद अजय सिंह और अरुण यादव का हारना भी कांग्रेस को अखरा है। दोनों नेता ना तो विधानसभा में और ना ही लोकसभा मे कुछ कमाल कर पाए।दोनो चुनाव उन्होंने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र से लड़े थे, इसलिए हार के लिए किसी दूसरे नेता पर तोहमत भी नहीं लगाई जा सकती।जहां सिंह किसी पद की रेस से बाहर होते हुए नजर आ रहे है वही यादव को एक और मौका मिलने की संभावना है, क्योंकि वे राहुल गांधी के करीबी माने जाते है ऐसे में राहुल गांधी की गुड बुक में शामिल अरुण यादव का राजनीतिक पुनर्वास अब कहां होता है, यह देखना दिलचस्प होगा।इसके साथ ही विवेक तन्खा और कांतिलाल भूरिया को लेकर भी अभी कुछ नही कहा जा सकता। तन्खा दोबारा से राकेश सिंह से हारे वही भूरिया के लिए हार बड़ी रही, क्योंकि जिस नेता ने विधानसभा में उनके बेटे को हराया उसी डामोर ने अब लोकसभा में उन्हें बड़ी शिकस्त दी, जबकी यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट में गिनी जाती है।ऐसे में उनके सियासी भविष्य को लेकर पार्टी क्या फैसला लेगी यह कहना थोडा मुश्किल है।