हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने के उपाय
आज की भागती दौड़ती जिंदगी में बीपी की समस्या बेहद आम है। किसी को हाई बीपी का प्रॉब्लम है तो किसी को लो बीपी का। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विटमिन डी की कमी से बच्चों में हाई बीपी का खतरा बढ़ जाता है। जी हां हाल में हुई एक स्टडी में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक अगर जन्म के समय या गर्भावस्था में बच्चे को विटमिन डी की सही खुराक न मिली हो तो उसके लिए हाई बीपी का रिस्क बढ़ जाता है।
कैल्शियम अब्जॉर्ब करने के लिए जरूरी है विटमिन डी
बता दें कि हमारे शरीर को हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम को अब्जॉर्व करने के लिए विटमिन डी की आवश्यकता होती है। जो कि हमारे शरीर को दो तरह से मिलता है। पहला तो खुद हमारा शरीर बनाता है जब वह सूर्य से मिलने वाले प्रकाश के संपर्क में होता है। वहीं दूसरा हम खाद्य पदार्थों से मसलन अंडे, सैल्मन और पाश्च्युरीकृत दूध से बने उत्पादों से लेते हैं। इसके अलावा कुछ विटमिन डी सप्लिमेंट्स भी आते हैं। इसके प्रयोग से हम शरीर में विटमिन डी की कमी को पूरा करते हैं।
हाई बीपी की समस्या 60 फीसदी बढ़ जाती है
स्टडी में कहा गया है कि गर्भावस्था या बचपन में विटमिन डी की सही मात्रा न मिले तो 6 से 18 साल की उम्र तक के बच्चों में हाई सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर की समस्या 60 फीसदी बढ़ जाती है। बता दें कि यह निष्कर्ष निकालने के लिए शोधकर्ताओं ने बॉस्टन मेडिकल सेंटर में जन्म से 18 वर्ष तक की उम्र के 775 बच्चों पर शोध किया। इसमें लो विटमिन डी का स्तर जन्म के समय गर्भनाल रक्त में 11 एनजी / एमएल (नैनोग्राम प्रति मिलीमीटर) से कम पाया गया। वहीं शुरुआती बचपन में यह एक बच्चे के रक्त में 25 एनजी / एमएल से कम थी।
विटमिन डी की सही मात्रा मिलना है जरूरी
स्टडी में यह बताया गया कि गर्भावस्था या फिर शुरुआती बचपन में विटमिन डी की सही मात्रा मिलना बेहद जरूरी है। अन्यथा यह हाई सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर रीडिंग से डायस्टॉलिक ब्लड प्रेशर, ब्लड प्रेशर रीडिंग में दूसरे नंबर पर होने पर भी हृदय रोग का खतरा बढ़ा देती है। स्टडी के प्रमुख लेखक और जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय ब्लूमबर्ग स्कूल में सहायक वैज्ञानिक गुयिंग वांग ने कहा कि हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि बच्चों को गर्भावस्था और शुरुआती बचपन में यदि विटमिन डी की सही खुराक दी जाए तो यह उनकी हाई बीपी की समस्या को कम करने में सहायक होगा। इसलिए जरूरी है कि समय-समय पर विटमिन डी की जांच कराते रहें।
नियमित जांच है जरूरी
चिकित्सक बताते हैं कि तीन साल की उम्र से अधिक उम्र के बच्चों में नियमित चिकित्सा देखभाल के समय रक्तचाप की जांच की जानी चाहिये। इससे भी उसे हाई बीपी के खतरे से बचाया जा सकता है। बता दें कि बचपन में उम्र के साथ रक्तचाप बढ़ जाता है और बच्चों में उच्च रक्तचाप को औसत सिस्टॉलिक या डायस्टॉलिक रक्तचाप की तीन या चार बार की माप के औसत के हिसाब से तथा बच्चे के लिंग, उम्र व ऊंचाई के लिये उपयुक्त मान की 95 प्रतिशत के बराबर या उच्चतर निर्धारित किया जाता है।