हाँ के बहुमत पर भी ना को मिला महत्व

रायपुर
विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने शीतकालीन सत्र में ऐसी अनूठी मिसाल पेश की जिसके चलते जिसके चलते छत्तीसगढ़ विधानसभा की गरिमा को एक नई उंचाई मिली। सदन में पहली बार ऐसा हुआ कि विपक्ष की संख्या के कम होने के बावजूद,और ध्वनि मत में हाँ के प्रभावकारी होने के बावजूद ना के स्वर को विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने महत्व दिया और मान्य परंपरा को दरकिनार करते हुए चर्चित नगर पालिका निगम संशोधन विधेयक पुर:स्थापित के पेश होने पर ना के स्वर के कहने पर विपक्ष को बोलने का अवसर दिया।

यह वही संशोधन विधेयक है जिसके सदन से पास होने पर महापौर और अध्यक्ष पद के लिए प्रदेश में अप्रत्यक्ष प्रणाली प्रभावी हो जाएगा। किसी विधेयक को पारित करने का जो प्रचलन है वह ध्वनि मत है। जाहिर है कांग्रेस बहुमत में हैं और सदस्यों का स्वर हाँ कहते हैं तो सबसे तेज होता है, विपक्ष की ना संख्याबल के आधार पर कमजोर होती है और प्रस्ताव पास हो जाता है।

विपक्ष ने इस पुर:स्थापना के पेश होने पर आपत्ति की तो आसंदी ने कहा कि अरे ना ला त बोल.. मैं फेर बोले बर देहूं न जी। और फिर आसंदी ने हाँ और ना में पक्ष माँगा, और विपक्ष के ना को महत्व देते हुए उन्हें इस मसले पर बोलने की अनुमति दे दी।

इस विधेयक को लेकर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के साथ अजय चंद्राकर,बृजमोहन अग्रवाल,शिवरतन शर्मा ने इस विधेयक के पुर: स्थापना पर आपत्ति दर्ज कराई। जिस पर अध्यक्ष चरणदास महंत ने सरकार से जवाब माँगा और फिर विधेयक को मंजूरी दे दी।

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