हरियाणा के चुनाव में जागा जाट आरक्षण का जिन्न, ‘चौटाला परिवार’ बना रहा मुद्दा

 
नई दिल्ली 

 हरियाणा की सियासत में अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे 'चौटाला परिवार' ने 'जाट आरक्षण' के मुद्दे को एक बार फिर उठाना शुरू कर दिया है. जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के बाद अब इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला ने चौधरी देवीलाल की जयंती पर जाट आरक्षण के मुद्दे के जरिए सत्ता में वापसी करना चाहते है.

इनेलो ने चौधरी देवीलाल की जयंती पर बुधवार को कैथल में रैली करके अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है. इस दौरान हरियाणा के चार बार  मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला और अभय सिंह चौटाला ने बीजेपी-कांग्रेस पर हमलावर होते हुए प्रदेश की जनता से जमकर वादे किए और नए हरियाणा की तस्वीर दिखाई.

कैथल में ओम प्रकाश चौटाला और अभय चौटाला की पिता-पुत्र जोड़ी ने हरियाणा में हुई तीन बार हिंसा के लिए बीजेपी सरकार को जिम्मेदार ठहराया. जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बिगड़े हालात का जिक्र करते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने कहा कि इतने बेगुनाह लोगों की जान कभी आज तक नहीं गई. उन्होंने कहा कि बीजपी सरकार ने प्रदेश का भाईचारा खराब किया है.

जेजेपी के प्रवक्ता दलवीर धनखड़ ने कहा कि इनेलो से पहले दुष्यंत चौटाला ने किसानों की कर्जमाफी और जाट आरक्षण के मुद्दे को उठाया है. पिछले पांच सालों में जाट समुदाय को बीजेपी की खट्टर सरकार ने पूरी तरह नजर अंदाज करने के साथ-साथ प्रदेश के तमाम समुदाय की उम्मीदों को तोड़ने का काम किया है.

जाट आरक्षण के लिए बीजेपी ने उठाया कदम
वहीं, बीजेपी नेता जवाहर यादव ने कहा कि जाट आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी सरकार ने ठोस कदम उठाया. जाट समुदाय को आरक्षण देने के लिए विधानसभा से बिल पास करने का काम हमारी सरकार ने किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में रोक लग गई है तो इसमें हमारी क्या गलती है. उन्होंने कहा कि जाट आरक्षण के दौरान बिगड़ते कानून व्यवस्था को देखते हुए कड़े कदम उठाए गए थे. हालांकि मरने वाले लोगों से हमारी हमदर्दी है, लेकिन उस वक्त हम क्या कर सकते थे. वह कहते हैं कि हम कांग्रेस की तरह नहीं है कि 1984 की तरह सड़क पर बेगुनाहों को मरने के लिए लोगों को छोड़ देते.

हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप नरूला ने कहा कि जाट समुदाय बीजेपी से नाराज है, लेकिन वह कई राजनीतिक दलों के बीच बंटा हुआ है. जबकि दूसरे समुदाय का बड़ा वोट बीजेपी के साथ है. ऐसे में इनेलो और जेजेपी के इस मुद्दे को उठाने से हरियाणा की सियासत में बहुत बड़ा कोई उलटभेर नहीं लग रहा है.

हरियाणा में जाट कितने अहम?
बता दें कि हरियाणा में जाट समुदाय के लोग आरक्षण की मांग को लेकर कई बार सड़क पर उतर चुके हैं और कई लोगों की इसमें जान भी गई है. आरक्षण आंदोलन के चलते कई करोड़ों रुपये की निजी और सरकारी संपत्त‍ि का नुकसान भी पहुंचा है.

हरियाणा में करीब 28 फीसदी जाट मतदाता हैं और 90 विधानसभा सीटों में से 30 सीटों पर किंग मेकर की भूमिका में है. ऐसे में हरियाणा की सियासत में जाटों का 2014 से पहले तक राजनीतिक वर्चस्व कायम था, लेकिन बीजेपी ने गैर-जाट कार्ड खेलकर सारे राजनीतिक समीकरण को ध्वस्त कर दिया है. ऐसे में एक बार फिर जाट आरक्षण की मांग उठ रही है, क्या इनोलो और जेजेपी इस मुद्दे के सहारे अपनी सत्ता में वापसी कर पाएंगे?

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