हरदा : इमरान मंसूरी की शादी, दावत में मालवीया परिवार की मनुहार !

हरदा। इमरान मंसूरी की यास्मीन बानो से शादी के निमंत्रण पत्र में विनीत, स्वागतातुर दर्शनाभिलाषी और विशेष आग्रह में समस्त मालवीया परिवार के नाम देखकर हैरान न हों। 

इस रिवायत की बुनियाद के पीछे लियाक़त मंसूरी और कन्हैयालाल मालवीया का 38 साल पुराना याराना है। जो आज भी कायम है। 

कन्हैयालाल मालवीया के बच्चों की शादी के अवसर पर निमंत्रण में जहां विनीत कॉलम में लियाक़त मंसूरी का नाम आता है। वहीं कन्हैयालाल भी दावत ए वलीमा कार्ड पर न्याज़मन्द के रूप में पढ़े जा रहे हैं। 

 

साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल मानें जाने वाले शहर हरदा में इन दोनों की दोस्ती के सभी वर्ग के लोग कायल हैं। इनकी दोस्ती की सलामती के लिए दुआ भी करते हैं।

 

सलामत रहे दोस्ताना –

 

लियाक़त और कन्हैयालाल की मजबूत दोस्ती के पीछे मुहब्बत भाईचारे के फेविकोल का कड़क जोड़ है। जो इन्हें जोड़े हुए है। 

 

हालांकि इनकी दोस्ती के किस्से पहले भी प्रकाशित हुए। इस बार शादी की दावत में मिश्रित नामों को लेकर चर्चा में यह याराना उरूज़ पर जा पहुंचा है। 

 

सबसे खास बात यह कि 1985 में लियाक़त के लिए वधु का चयन कन्हैयालाल ने किया। वहीं 1986 में कन्हैयालाल के लिए बहू बड़े भाई लियाक़त ने पसंद की। 

 

हरदा में 1962 में जन्में लियाक़त बताते हैं कि उनके मांबाप न होने से उनकी परवरिश नाना पक्ष द्वारा की गई। हाईस्कूल में 9 कक्षा तक पढ़ने के बाद उनकी पहचान परिचितों के माध्यम से लकड़ी के कारीगर 1963 को जन्में , कक्षा चौथी तक पढ़े कन्हैया से हुई। लियाक़त से करीब एक साल छोटे कन्हैयालाल ने इनको यह काम सिखाया। आज जनपद कार्यालय परिसर में याराना फर्नीचर के नाम से इनकी संयुक्त दुकान है। लियाक़त की तीन बहन के एक भाई कन्हैयालाल भी हैं। जो त्यौहार पर राखी का इंतज़ार करते हैं। और इधर लियाक़त को राखी बांधती हैं कन्हैयालाल की बहनें। 

 

याराना फर्नीचर के कामकाज की व्यवस्था के जिम्मा लियाक़त देखते हैं, वहीं दोनों परिवारों के खर्च, लेनदेन का जिम्मा कन्हैयालाल के जिम्मे है। 

 

दोनों की रिश्तेदारी के लोग इन्हें लियाक़त- शौक़त और राम-बलराम के नाम से बुलाते हैं।  आपस में मनमुटाव होने पर वे एक दूसरे के परिवार के पास जाकर बच्चों से बतियाकर दस मिनिट में भूल भी जाते हैं। 

 

कन्हैयालाल बताते हैं कि लियाक़त का मकान का काम मैंने ही कराया। जब मुस्लिम बहुल नई आबादी में मैंने मकान का काम शुरू किया तो वहां के कुछ गैरमुस्लिम परिवारों को लगा कि अपनी तादाद में एक और घर बढ़ा। गृह प्रवेश पर जब कुरानख्वानी हुई तब ये राज़ खुला कि ये घर लियाक़त का है। 

 

कन्हैयालाल लियाक़त बताते हैं कि हम दोनों की 5-5संतानें हैं। हमारे लड़का लड़की भी हमारी तरह ही प्रेमपूर्वक निबाह रखते हैं। 

अभी 14 अप्रैल को इमरान की होने जा रही शादी में लड़की का चुनाव कन्हैयालाल ने किया। 

 

लड़की वाले भी इनकी मुहब्बत देखकर दोनों परिवारों की एक जैसी पेरावनी की रस्म अदा करते हैं। 

 

दिल एक मंदिर, दिल एक मस्जिद – 

 

मंदिर मस्जिद मुद्दे पर लियाक़त कन्हैयालाल कहते हैं दिल में ही मन्दिर है और मस्जिद हैं। जब कन्हैयालाल मन्दिर जाते हैं तो लियाक़त बाहर रुक कर  इंतेज़ार करते हैं। वहीं लियाक़त की नमाज़ होने के बाद में कन्हैयालाल साथ मे मस्जिद से लौटते हैं। 

 

कन्हैयालाल लियाक़त दोनों का कहना है कि यदि हमारा सगा भाई भी होता तो शायद ही ऐसे होता, जैसे हम हैं। अब लियाक़त मालवीया लिखें या कन्हैया मंसूरी इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। आपस में दोस्त और भाई जो हैं। 

 

कन्हैयालाल का नन्हा पोता घर पर जब किसी बात पर रुठ जाता तो यह जरूर कहता है – रुको, मैं सबको दादा (लियाक़त) से पिटवाऊंगा। यही वो रिश्ता है जो एक दूसरे के शादी के आमंत्रण दावत पर बड़ेबडों के साथ नन्हीं मनुहार प्रकाशित करने का हकदार बनाता है।

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