स्लम में रहने वालों का भी शहर पर अधिकार: दिल्ली हाई कोर्ट

नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले से स्लम में रहने वालों को काफी राहत मिली है। अकसर ऐसे लोग सरकार की ओर से चलाए जाने वाले अतिक्रमण रोधी अभियान के शिकार होते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि उनका भी शहर पर अधिकार है। जस्टिस एस.मुरलीधर और जस्टिस विभु बाखरु की एक बेंच ने यह फैसला दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्र सरकार की एजेंसियों जैसे भारतीय रेलवे समेत दिल्ली सरकार की एजेंसियों को अतिक्रमण रोधी अभियानों से पहले विस्तृत सर्वे करना चाहिए। उनको पीड़ित लोगों के परामर्श से पुनर्वास की एक योजना तैयार करनी चाहिए। एजेंसियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जिनलोगों का मकान खाली कराया जा रहा है, उनका जल्द पुनर्वास हो।

कोर्ट ने कहा, 'जब कोई झुग्गीझोपड़ी बस्ती पुनर्वास की पात्र बन जाए तो एजेंसियों को उसे अवैध अतिक्रमण के तौर पर देखना बंद कर देना चाहिए।' कोर्ट ने आगे यह भी कहा, 'झुग्गी निवासियों को ऐलान के बगैर अन्य एजेंसियों के समन्वय से और ऊपर जिक्र किए गए कदमों पर अमल किए बगैर जबरन खाली कराना कानून के खिलाफ होगा।'

कोर्ट ने अपने फैसले में 'शहर पर अधिकार' का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि यह आवास के अधिकार का हिस्सा है जो सिर्फ किसी के सिर पर छत तक ही सीमित नहीं है। इसके दायरे में आजीविका का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और साफ पेयजल, सीवरेज एवं परिवहन सुविधाओं का अधिकार समेत खाने का अधिकार आता है।

कोर्ट का यह फैसला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन की याचिका पर आया है। उन्होंने साल 2015 में एक याचिका दाखिल की थी। उस दौरान केंद्रीय रेल मंत्रालय और दिल्ली पुलिस ने शकूर बस्ती में अवैध मकानों को गिराया था। वह भी ऐसे समय में जब ठंड का मौसम अपने चरम पर होता है। उन्होंने अदालत से गुहार लगाई थी कि केंद्रीय रेल मंत्रालय और दिल्ली पुलिस को ऐसा करने से रोका जाए। इस अतिक्रमण रोधी अभियान में कथित तौर पर 5,000 लोग बेघर हो गए थे और छह महीने की एक बच्ची की मौत भी हो गई थी।

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