स्टोरी, एक्टिंग और संवाद में दम, पैसा वसूल है फैमिली ऑफ ठाकुरगंज

 
नई दिल्ली      
   
फिल्म: कॉमेडी/ एक्शन
कलाकार:जिम्मी शेरगिल, माही गिल, सौरभ शुक्ला, नंदीश संधू
निर्देशक:मनोज झा, प्रिंस सिंह
बॉलीवुड इंडस्ट्री में इन दिनों जातिवाद पर बन रही फिल्मों का चलन जोरों पर है. फैमिली ऑफ ठाकुरगंज के टाइटल से ही बहुत लोग इस बात का अंदाजा लगा लिए होंगे कि ये फिल्म भी ऐसी ही कुछ है. मगर ऐसा नहीं है, ये फिल्म सच-झूठ और सही-गलत के ताने-बाने पर बुनी गई है. सच्चाई की हमेशा जीत होती है ये सीख इस फिल्म से देने की कोशिश की गई है.

जाहिर सी बात है कि फिल्म का मिजाज मजाकिया है और अच्छी पंच लाइन्स की भरमार से ये फिल्म कभी भी थकी हुई नहीं लगती है. इस फिल्म के साथ एक खास बात ये भी है कि इसकी स्टार कास्ट काफी अच्छी है जो दर्शकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से सफल हो पाई है.

क्या है कहानी-

ये फिल्म दो भाइयों, नुन्नू (जिम्मी शेरगल) और मुन्नू (नंदीश संधू) की कहानी है जिसमें से एक सच्चाई के रास्ते पर चलता है तो दूसरा फरेब, दबंगई और लूटमार का रास्ता चुनता है. बड़ा भाई नुन्नू बचपन से ही काफी शरारती रहता है और उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता. मगर छोटा भाई मुन्नू सही रास्ते पर चलने वाला लड़का है. फिल्म की शुरुआत में एक संवाद है जिसमें नुन्नू की मां उससे कहती हैं कि ''बेटे के सिर से बाप का साया चले जाने के साथ ही बेटे का बचपन भी चला जाता है.''

यहीं से कहानी की शुरुआत होती है. पिता के स्वर्गवास के बाद सारी जिम्मेदारी अचानक ही नुन्नू के कंधों पर आ जाती है. चूंकि उसने कभी पढ़ाई नहीं की इसलिए वो अपना और घरवालों का पेट पालने के लिए गलत रास्ता पकड़ लेता है. इसी बीच कहानी में एक बेबस मां का भाव भी दिखाया गया है. वो अपने बेटे की हरकतों से वाकिफ होने के बावजूद खामोश रहना पसंद करती है, क्योंकि उसके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं होता. नुन्नू गलत कामों से पैसा कमा रहा होता है और उसकी मां उसे डांटने की बजाय उसकी हौसलाफजाई करती है.

नुन्नू बुराई के रास्ते पर चलते-चलते काफी आगे बढ़ जाता है. मगर लोगों की मदद भी करता है. आम जनों के प्रति उसके दिल में आदर और दया का भाव होता है. गलत काम के साथ-साथ समाज सेवा भी करता रहता है और लोगों का फेवरेट बन जाता है. वहीं दूसरा भाई मुन्नू पढ़-लिख कर एक प्रोफेसर बन जाता है और एक कोचिंग संस्थान चलाता है. मुन्नू के मन में बड़े भाई के प्रति आदर-सत्कार का भाव तो है, मगर वो उनके काम और तौर-तरीकों को पसंद नहीं करता. वो भाई से ये सारे काम छोड़ने को कहता है.

मुन्नू के अंदर की अच्छाई और सच की राह नुन्नू को पिघलाने में सफल तो हो जाती है, मगर कहानी में एक बहुत बड़ा ट्विस्ट भी लाती है. इंटरवल के बाद की कहानी इसी ट्विस्ट पर आधारित है. इसी के साथ-साथ बाकी किरदार भी सक्रिय होते हैं और अंत में फिल्म दर्द की एक टीस लिए हैप्पी एंडिंग के साथ खत्म होती है.

कैसी है एक्टिंग-

मारपीट और रौबदार किरदार निभाने में जिम्मी शेरगिल ने महारथ हासिल कर ली है. जिम्मी शेरगिल ने गैंगस्टर और एक्शन से भरे रोल्स इतनी फिल्मों में कर लिए हैं कि वे इस रोल में भी पूरी तरह से फिट नजर आ रहे थे. माही गिल का रोल भी ठीक था. फिल्म में नंदीश संधू और प्रणति राय प्रकाश की केमिस्ट्री भी बेहद क्यूट थी. सह कलाकारों में बाबा भंडारी के रोल में सौरभ शुक्ला ने एक बार फिर से प्रभावित किया, एसपी के रोल में पवन मल्होत्रा शानदार थे. इसके अलावा मनोज पाहवा, सुप्रिया पिलगांवकर, यशपाल शर्मा, मुकेश तिवारी और राज जुत्शी ने भी अपनी जगह ठीक हैं.

छोटे शहर में शूट की गई ये फिल्म समाज में फैल रहे अत्याचार और काली करतूतों की दास्तां बयां करती है. फिल्म में कुछ ज्यादा नयापन नहीं है. मगर कहानी में कुछ ऐसे ट्विस्ट हैं जो बांध कर रखते हैं. कुछ बढ़िया संवाद हैं. ये फिल्म मनोरंजन से भरपूर है. इस बात के लिए मनोज के झा और प्रिंस सिंह की तारीफ की जा सकती है.

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