सैफई मेडिकल कॉलेज में रैगिंग: डीएम ने भेजी जांच रिपोर्ट, कहा- यूनिवर्सिटी ने मामले को दबाया

सैफई
उत्तर प्रदेश के सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में रैगिंग के मामले में डीएम ने शासन को रिपोर्ट भेज दी है, जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा मामले को दबाए जाने की जानकारी दी गई है। डीएम ने इसके साथ ही कुलपति के उस बयान की भी निंदा की, जिसमें उन्होंने रैगिंग को अनुशासन और संस्कार के लिए जरूरी बताया था।

इटावा के जिलाधिकारी जे. बी. सिंह ने बुधवार को सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में छात्रों संग रैगिंग मामले में शासन को एक रिपोर्ट प्रेषित की, जिसमें स्पष्ट किया गया कि रैगिंग मामले को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छिपाया गया। डीएम ने मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय कमिटी का गठन किया था, जिसने दो घंटे के अंदर प्रदेश के प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) रजनीश दुबे को अपनी रिपोर्ट भेज दी। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि पीड़ित छात्रों से जबरन यह लिखवाया गया कि यह रैगिंग की घटना नहीं थी।

'नए छात्रों का सिर मुंडवाकर निकाली गई परेड'
गौरतलब है कि सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी परिसर में एमबीबीएस के नए छात्रों के साथ सीनियर छात्रों ने कथित रूप से रैगिंग की, जिस कारण 150 जूनियर छात्रों के सिर मुंडवाए गए। रैगिंग का विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें एमबीबीएस के करीब 150 जूनियर छात्र सिर मुंडवा कर अस्पताल एवं क्लास तक एक लाइन में चले जा रहे हैं। नए छात्र, सीनियर्स को झुककर सलाम भी करते देखे गए।

'अनुशासन के लिए रैगिंग बेहद जरूरी, यह संस्कार सिखाती है'
इस मामले के प्रकाश में आने के बाद यूनिवर्सिटी के कुलपति ने मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान घटना पर लीपापोती के इरादे से विवादास्पद बयान दे दिया था। उन्होंने कहा था, 'अनुशासन के लिए रैगिंग बेहद जरूरी है। यह संस्कार सिखाती है। अब तो कुछ भी नहीं, जब मैं पढ़ता था तब यह सब सामान्य था। छात्रों को अनुशासन में ढालना बहुत जरूरी है।' डीएम ने कुलपति के इस बयान को बेहद आपत्तिजनक बताया।

शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग पूरी तरह प्रतिबंधित कर चुका है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट, विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाओं के परिसर में रैगिंग को पूरी तरह प्रतिबंधित कर चुका है। एंटी रैगिंग कानून में सख्त सजा की भी व्यवस्था है। मेडिकल, इंजिनियरिंग आदि शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की गम्भीर शिकायतों और छात्रों की प्रताड़ना संबंधी कई मामलों में खुदकशी करने की घटनाओं के बाद शिक्षण संस्थानों पर दहशत का माहौल खत्म करने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने यह कड़ा कदम उठाया था।

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