मुख्तार रॉबिनहुड अंसारी: एक पढ़े लिखे खानदान का छह फुटा बाहुबली

 
नई दिल्ली 

हिंदुस्तान की सियासत में बाहुबलियों का बोलबाला कोई नई बात नहीं है. यहां चुनावी रणभेरी में ताल ठोकने के लिए कई बार बाहुबलियों का सहारा लिया जाता है या फिर बाहुबलियों पर ही कई दल दाव लगाते हैं. उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर भी कई ऐसे नेता उपजे हैं, जिन्होंने इस सूबे की राजनीति को प्रभावित किया है. ऐसे ही प्रभावी नेताओं का गढ़ माना जाता है यूपी का पूर्वांचल. यूं तो पूर्वांचल से कई नेता आए लेकिन एक ऐसा भी नेता इस क्षेत्र से आता है जो अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर पूर्वांचल का रॉबिनहुड बन गया. उस बाहुबली नेता का नाम है मुख्तार अंसारी. प्रदेश के माफिया नेताओं में मुख्तार अंसारी का नाम पहले पायदान पर माना जाता है.

कौन हैं मुख्तार अंसारी

मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में ही हुआ था. उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. जबकि उनके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे. राजनीति मुख्तार अंसारी को विरासत में मिली. किशोरवस्था से ही मुख्तार निडर और दबंग थे. उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और सियासी राह पर चल पड़े. कॉलेज में उन्होंने एक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा कुछ खास नहीं किया. लेकिन राजनीति विज्ञान के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी.बी. सिंह के मुताबिक वह एक आज्ञाकारी छात्र थे.

विकास के नाम पर बना था गैंग!

1970 में सरकार ने पिछड़े हुए पूर्वांचल के विकास के लिए कई योजनाएं शुरु कीं. जिसका नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में जमीन कब्जाने को लेकर दो गैंग उभर कर सामने आए. 1980 में सैदपुर में एक प्लॉट को हासिल करने के लिए साहिब सिंह के नेतृत्व वाले गिरोह का दूसरे गिरोह के साथ जमकर झगड़ा हुआ. यह हिंसक वारदातों की श्रृंखला का एक हिस्सा था. इसी के बाद साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह ने अपना अलग गिरोह बना लिया और 1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर कब्जा करना शुरु कर दिया. अपने काम को बनाए रखने के लिए बाहुबली मुख्तार अंसारी का इस गिरोह से सामना हुआ. यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी शुरू हो गई थी.

अपराध की दुनिया में कदम

1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में उनका नाम आया था. हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई थी. लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गए थे. 1990 का दशक मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम था. छात्र राजनीति के बाद जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था.

राजनीति में पहला कदम और गैंगवार

1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा. 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए. उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. 2002 आते आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए. इसी दौरान एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया. दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए. ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया था. उसके मारे जाने की अफवाह थी. इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे. मुख्तार चौथी बार विधायक हैं.

ब्रजेश सिंह की वापसी

हालांकि बाद में ब्रजेश सिंह जिंदा पाए गए और फिर से दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. अंसारी के राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ब्रजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया. राय ने 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजाल अंसारी को हराया था. बाद में मुख्तार अंसारी ने दावा किया कि कृष्णानंद राय ने ब्रजेश सिंह के गिरोह को सरकारी ठेके दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया और उन्हें खत्म करने की योजना बनाई.

मुस्लिम वोट का सहारा और गिरफ्तारी

मुख्तार अंसारी ने गाजीपुर और मऊ क्षेत्र में चुनाव के दौरान उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम वोट बैंक का सहारा लिया. उनके विरोधियों ने जाति के आधार पर विभाजित हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश की. इसके बाद पूर्वांचल में कई आपराधिक घटनाएं और सांप्रदायिक हिंसा की वारदात हुई. ऐसे ही एक दंगे के बाद मुख्तार अंसारी पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप लगे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

 

कृष्णानंद राय हत्याकांड और आपराधिक मामले

मुख्तार अंसारी जेल में बंद थे. इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को उनके 6 अन्य साथियों को सरेआम गोलीमार  हत्या कर दी गई. हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थीं. मारे गए सातों लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थीं. इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 में रहस्यमई परिस्थितियों में मृत पाया गया था. उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वालों में से अंसारी और बजरंगी के निशानेबाजों अंगद राय और गोरा राय को पहचान लिया था.
 

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