वेतन सवा लाख और और आलीशान घर सिर्फ 90 रुपए में
भोपाल
सरकार के खजाने की माली हालत भले ही खराब हो, लेकिन माननीयों पर मेहरबानी में कोई कमी नहीं हैं. हालत ये है कि माननीयों का वेतन-भत्ता विधानसभा गठित होने के 61 सालों में 200 से बढ़कर करीब सवा लाख पहुंच गया है, लेकिन सरकारी आवास के लिए चुकाया जाने वाला किराया वे अभी भी साल 1956 के निर्धारित दर पर ही देते हैं.
विधायकों के निजी खर्चों को छोड़ दें तो उनके रहने से लेकर घूमने तक सारा खर्च सचिवालय उठाता है. माननीयों को मिलने वाले हर अलाउंस को जोड़ दें तो करीब सवा लाख तनख्वाह अलग से मिलता है. साल 1956 में जब एमपी विधानसभा का गठन हुआ तब विधायकों को हर महीने 200 रुपये वेतन मिलते थे. विधानसभा सत्र में शामिल होने पर उन्हें आवास के लिए 1 से 3 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से चुकाने पड़ते थे. यह किराया तात्कालीन समय के अनुसार तो जायज था लेकिन क्या यह किराया आज के समय में भी जायज है ?
साल 1956 से अब तक महंगाई के साथ माननीयों के वेतन में भी इजाफा हुआ. लेकिन आवास के लिए चुकाया जाने वाला किराया जस का तस है. आम आदमी आज के समय में जब 3 रुपये में बच्चों के लिए चॉकलेट का इंतजाम नहीं कर सकता. उस 3 रुपये में विधायकों को 1 दिन के लिए आवास उपलब्ध हो जाता है.