लोकसभा चुनाव: मध्य प्रदेश की इन 7 लोकसभा सीटों पर मतदान शुरू

भोपाल 
लोकसभा चुनाव के पांचवे और मध्यप्रदेश में दूसरे चरण के चुनाव में सात लोकसभा सीटों, पर चुनाव हो रहा है. इनमें टीकमगढ़, होशंगाबाद, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और बैतूल शामिल हैं. इन सीटों पर सौ से ज्यादा प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इस दौरान एक करोड़ 19 लाख वोटर्स उम्मीदवारों के भविष्य को तय करेंगे. चुनाव के लिए 15240 मतदान केंद्र बनाए गए हैं.

प्रदेश में जिन 7 लोकसभा सीटों के लिए आज मतदान हो रहा है, वे सभी सीटें 2014 के चुनाव में बीजेपी के कब्जे में रही हैं. इन सीटों में बुंदेलखंड की 3 सीटें खजुराहो, टीकमगढ़, दमोह और विन्ध्य की सतना और रीवा, साथ में मध्य भारत की बैतूल, होशंगाबाद सीट शामिल है. राजनीतिक गणित की बातें करें तो बुंदेलखंड और विंध्य की पांचों सीट पर जातिगत समीकरण हावी हैं.यहां पर बीजेपी और कांग्रेस के साथ ही सपा-बसपा ने पूरी ताकत झोकी है

खजुराहो: यहां से बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार बीडी शर्मा को और कांग्रेस ने ठाकुर उम्मीदवार कविता राजेश सिंह को उतारा है, जो कि राज नगर के कांग्रेस विधायक नाती राजा की पत्नी हैं.

इस संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा शामिल हैं, जिनमें से 5 पर बीजेपी मजबूत स्थिति में है वहीं 3 पर कांग्रेस अपनी ताकत लगाए हुए हैं. इन सब पर स्थानीय स्तर के जातीय समीकरण भारी पड़ रहे हैं. बीजेपी ने पहली बार यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा है जबकि कविता से क्षेत्र की महारानी है.

दमोह: यहां दो लोधियों के बीच सीधी जंग है. इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रहलाद पटेल और कांग्रेस के उम्मीदवार प्रताप सिंह लोधी एक ही जाति से आते हैं. यहां देखना ये रोमांचक होगा कि लोधी समाज किसे नेता मानकर एकजुट होते हैं.

इस संसदीय क्षेत्र में पानी सबसे बड़ा मुद्दा है इस पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की उम्मीदवार पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं इससे पानी पर किरकिरी बीजेपी की हो रही है क्योंकि प्रहलाद पटेल वहां से सांसद हैं और पिछले 15 साल तक प्रदेश में बीजेपी की सरकार रही है.

होशंगाबाद: यहां से बीजेपी ने सांसद राव उदय प्रताप सिंह तो कांग्रेस के शैलेंद्र इवान को प्रत्याशी बनाया है. दीवान पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं उदय प्रताप यहां कांग्रेस और फिर बीजेपी से सांसद रह चुके हैं. लेकिन इस बार उन्हें मोदी लहर से जीत की उम्मीद है. -दीवान को युवाओं के वोट और सांसद की क्षेत्रों में कमजोर पकड़ मुद्दा बनाकर जीतने का भरोसा है.

बैतूल: यहां बीजेपी की नौवीं जीत रोकना कांग्रेस की चुनौती है. बैतूल लोकसभा में पिछले आठवां चुनावों में यहां सिर्फ और सिर्फ बीजेपी का ही कब्जा रहा है. बीजेपी ने जाति प्रमाण पत्र के मामले में उलझी ज्योति का टिकट काटकर यहां इस बार 55 वर्षीय दुर्गादास पर दांव लगाया है, तो कांग्रेस ने इस सीट को अपनी झोली में डालने के लिए इस बार यहां 31 वर्ष के युवा उम्मीदवार राम के नाम पर दाव लगाया है.

सतना: इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. बीजेपी से सतना से सांसद गणेश सिंह को चौथी बार टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने 2009 का चुनाव सपा से हार चुके राजाराम त्रिपाठी को मैदान में उतारा है -बसपा ने अच्छे लाल कुशवाहा को टिकट दिया है. संसदीय क्षेत्र में जातीय फैक्टर काम करता है.

राजा राम के लिए स्वर्ण वोट का ध्रुवीकरण हो सकता है तो गणेश सिंह और अच्छे लाल कुशवाहा ओबीसी वोट पर भरोसा कर रहे हैं. कुशवाहा समाज से एकमात्र प्रत्याशी होने से अच्छेलाल आसपास के संसदीय क्षेत्रों पर भी असर डाल रहे हैं. बीजेपी ने गणेश के लिए हर असंतुष्ट नेता को मनाने का प्रयास किया है, यही कारण है कि घोर विरोधी नागेंद्र सिंह, शंकरलाल तिवारी और नरेंद्र त्रिपाठी और विष्णु त्रिपाठी जातीय संतुलन बना रहे हैं.

टीकमगढ़: इस संसदीय क्षेत्र में बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार को प्रत्याशी बनाया है जबकि कांग्रेस के किरण अहिरवार उम्मीदवार हैं. यहां बीजेपी अपनों से घिरी हुई है और भीतरघात छोड़ रही है. बीजेपी से पूर्व विधायक रहे आरडी प्रजापति यहां से बगावत कर सपा का दामन थाम कर प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं

सांसद वीरेंद्र कुमार को इसी के चलते दिक्कत हो रही है लेकिन इनकी सादगी की छवि कांग्रेस प्रत्याशी पर भारी पड़ रही है. यहां भी पानी और रोजगार मुख्य चुनावी मुद्दे हैं जिसका अधिक विरोध विरेंद्र कुमार के सांसद होने के चलते बीजेपी को ही झेलना पड़ रहा है.

रीवा: यहां दो ब्राहमण कैंडिडेट के कारण चुनाव दिलचस्प हुआ है. प्रदेश में बसपा सांसद का खाता रीवा से ही खोला था. बीजेपी ने जनार्दन मिश्रा को पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला का करीबी होने और परफॉर्मेंस के आधार पर फिर से टिकट दिया है तो कांग्रेस ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय श्री निवास तिवारी के नाती और पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी को खड़ा करके करीब 11 लाख युवा मतदाताओं पर फोकस किया है.

कांग्रेस यहां श्रीनिवास और सुंदरलाल के निधन के बाद सहानुभूति लहर के सहारे पार होने की कोशिश में है. ठाकुर और ब्राह्मण प्रत्याशी कई बार आमने -सामने आ चुके हैं इसलिए वहां जातीय फैक्टर हावी रहता है. ब्राहमण कैंडिडेट के कारण बसपा को ओबीसी और परंपरागत वोट पर भरोसा बढ़ा है.

फिलहाल इन सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. अब देखना यह होगा कि 23 मई को जब परिणाम घोषित होंगे तो कांग्रेस इन सात सीटों में से कितने पर विजय हासिल कर पाएगी.

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