लॉकडाउन: मजदूरों की रोजी-रोटी ठप, शहर में फंसे लोग अब गांव भागने को हैं बेकरार

पटना                                 
कोरोना वायरस के कहर की सबसे ज्यादा मार रोज कमाने-खाने वालों पर पड़ रही है। यह वह वर्ग है, जो गांव-घर छोड़कर शहरों में निजी नौकरी करता है। लेकिन इस वायरस के कारण काम-धंधे बंद हो चुके हैं और पूरी तरह लॉकडाउन छोड़कर गांव जाना मजबूरी हो गया है। क्योंकि शहरों में रहने के लिए इनके पास कोई स्थायी आशियाना नहीं है। साथ ही इनके खाने पर भी संकट आ गया है। 

फुवारीशरीफ से बाईपास के रास्ते शहर छोड़कर तीन लोग अपने गांव की ओर जा रहे थे। चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। नाम पूछने पर लोग घबरा गए और बोलने लगे अब खाने को कुछ नहीं बचा है। घर अपनों के बीच पहुंच जाएंगे तो बच जाएंगे। लगभग 27 साल के एक युवा ने बताया कि वह पटना में राज मिस्त्री के साथ रहकर मजदूरी करता है। इस परेशानी के बाद घर जाने का कोई साधन नहीं है। इसलिए पैदल ही 150 किलोमीटर लखीसराय के लिए चल निकले हैं। उसके साथ के एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि कबतक पहुचेंगे, यह पता नहीं, लेकिन यहां भूख से मरने से अच्छा है कि चलते चलते मर जाएं। अगर बच गए तो घर जरूर पहुंच जायेंगे। एक साथ तीनों ने बताया कि उनके पास कोई रास्ता नहीं है। कोरोना के प्रकोप के कारण काम बंद है। हम लोग एक ही गांव के थे, इसलिये हम लोगों ने पैदल ही निकलने का फैसला किया।

दूसरे शहरों से आये लोग अब भी पटना में
राजधानी में लॉकडाउन के दौरान कई स्तरों पर जिला प्रशासन ने कोई इंतजाम नहीं किए हैं। इसका खामियाजा दूसरे शहरों से आए लोगों के साथ पटना पुलिस को भुगतना पड़ रहा है। बाहर से आये दर्जनों लोग अब भी किसी तरह घर जाने की जुगत में लगे हैं। मजदूर वर्ग के लोग सड़क पर सोने के लिए मजबूर हैं। आलम यह है कि लोग सवारी वाहनों की तलाश में बाईपास पर पहुंच जा रहे हैं। वे भीड़ की शक्ल में सड़क पर खड़े हो जाते हैं। बाईपास किनारे रहने वाले लोगों ने बताया कि अचानक कुछ कुछ अंतराल पर लोग टोली बनाकर बाईपास किनारे पहुंच रहे हैं। सबके हाथ में झोला और बैग होता है। घर लौटने के लिए व्याकुल लोगों में मजदूर वर्ग के अधिक हैं।  

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