लॉकडाउन के बाद कैसे रीस्टार्ट करें इकॉनमी को, बता रहे हैं पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन

 
नई दिल्ली

इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस के चपेट में है। भारत भी इससे नहीं बच सका है। इसी की वजह से 21 दिनों का लॉकडाउन भी करना पड़ा है, जिसके चलते सब कुछ ठप हो गया। आईएमएफ कह चुका है कि मंदी की शुरुआत हो चुकी। ऐसे में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन बता रहे हैं कि कैसे लॉकडाउन खत्म होने के बाद इकॉनमी को दोबारा शुरू किया जा सकता है और कैसे भारत चुनौतियों से लड़ सकता है। रघुराम राजन ने कहा है कि ये मंदी इससे पहले 2008-09 आई मंदी से भी खतरनाक है, क्योंकि उस समय सब कुछ चल रहा था, कुछ ठप नहीं हुआ था। कंपनियां चल रही थीं, देश चल रहा है, फाइनेंशियल सिस्टम हेल्दी था, लेकिन इस बार हर चीज की हालत खस्ता है।
लॉकडाउन के बाद वायरस खत्म नहीं हुआ तो क्या?
रघुराम राजन कहते हैं कि अभी तो इस महामारी से लड़ने के लिए बड़े लेवल पर टेस्टिंग, क्वांरटीन और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत है। 21 दिन का लॉकडाउन वायरस से लड़ने की दिशा में पहला कदम है, जिससे भारत को इस महामारी से लड़ने का समय मिला, लेकिन अगर 21 दिन बाद भी वायरस का असर खत्म नहीं हुआ तो क्या? वह कहते हैं कि लंबे समय तक सब कुछ बंद नहीं किया जा सकता है। ऐसे में कंपनियों को अपने वर्कर्स को अतिरिक्त सुरक्षा देते हुए, ऑफिस आने से पहले स्क्रीनिंग करते हुए और ऑफिस में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए काम करना होगा। साथ ही, सरकार को गरीब और मिडिल क्लास परिवारों की आर्थिक मदद करनी होगी, क्योंकि नौकरी ना होने और पैसे की दिक्कत के चलते उनका सर्वाइवल खतरे में पड़ सकता है।
 
सबकी मदद ले सरकार, विपक्ष की भी
रघुराम राजन का कहना है कि भारत के पास इतने स्रोत हैं कि न सिर्फ इस महामारी से भारत उबर सकता है, बल्कि और भी मजबूती के साथ खड़ा हो सकता है। इसके लिए उन लोगों की मदद लेनी होगी, जो अनुभवी हैं। इसके लिए विपक्ष की भी मदद लेने में कोई हर्ज नहीं है। सारा काम प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं हो सकता, क्योंकि वहां पहले ही बहुत बोझ है, ऐसे में राज्यों के साथ मिलकर केंद्र सरकार को रणनीति बनानी होगी।
 

बड़ी कंपनियां छोटे सप्लायर्स की मदद करें
उन्होंने कहा कि इन सबके अलावा उन खर्चों को कम करना होगा, जो बहुत जरूरी नहीं हैं और उन चीजों पर फोकस करना होगा, जिनकी जरूरत बहुत अधिक है। साथ ही रघुराम राजन ये भी बोले के छोटे और मझले उद्योग पहले से ही परेशानी में हैं, ऐसे में बड़ी कंपनियों को अपने छोटे सप्लायर्स की मदद करनी चाहिए। इसके लिए वह बॉन्ड मार्केट से पैसे उठा सकते हैं। सरकार को अपनी सभी एजेंसी और पीएसयू को कहना चाहिए कि वह तुरंत अपने बकाया का भुगतान करें, ताकि प्राइवेट फर्मों को पैसों की दिक्कत ना हो और इकोनॉमी की इस गाड़ी को आसानी से आगे खींचा जा सके।
 

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